पी.जी.जी.सी.जी.-11 की विभागाध्यक्ष व शोधार्थी ने अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में प्रस्तुत किया शोधपत्र…
चंडीगढ़, 10 सितंबर 2023: पोस्ट ग्रेजुएट गवर्नमेंट कॉलेज फॉर गर्ल्स (पी.जी.जी.सी.जी.), सैक्टर-11 के संगीत वाद्य विभाग की अध्यक्षा डॉ. अमिता शर्मा और उनके शोधार्थी अरुनदीप सिंह ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी द्वारा आयोजित किए गए अंतरराष्ट्रीय सेमिनार ‘दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों की नृत्य एवं नाट्य परंपराएं’ में अपना शोधपत्र प्रस्तुत किया। 8 व 9 सितंबर को बी.एच.यू. के संगीत एवं मंच कला संकाय द्वारा आयोजित इस सेमिनार में पूरे विश्व भर से मात्र 13 शोधपत्रों का प्रस्तुतिकरण हेतु चयन किया गया था।
डॉ. अमिता शर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि उनके शोधपत्र का विषय ‘दक्षिण-पूर्वी एशियाई और भारत के नृत्यों में प्रयुक्त होने वाले समानांतर संगीत वाद्य’ था। इस विषय पर शोध के दौरान उन्होंने यह पाया कि भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में कालांतर में राजनीतिक कारणों से चाहे भिन्नता आ गई हो, परंतु इन दोनो क्षेत्रों की सांस्कृतिक धरोहर में एकसुत्रता का आभास होता है। दक्षिण-पूर्वी एशिया में अधिकांश देशों में मुस्लिम बहुसंख्या होने के बावजूद वहां रामायण व महाभारत की गाथाओं का मंच प्रदर्शन होना इस बात का साक्षात प्रतीक है। इसी क्रम में उन्होंने पाया के दोनों क्षेत्रों में प्रयुक्त होने वाले सांगीतिक वाद्यों में जो समानताएं हैं, उन्हीं की शोधपत्र में विस्तार सहित चर्चा की गई है।
अरुणदीप सिंह ने बताया कि शोध के दौरान 12 ऐसे सांगीतिक वाद्य मिले जो भारत और दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में, दोनों जगह पाए जाते हैं। हालांकि दोनों क्षेत्रों में इन्हें अलग-अलग नाम से जाना जाता है और इनमें कुछ मामूली भिन्नताएं भी आ गई हों, परंतु मूलतः इन वाद्यों की बनावट और बजाने की विधि एक समान ही है। इनमें भारत के मोरचंग, काष्ठ तरंग, बांसुरी, शहनाई, मृदंगम, ढोल, मंजीरा, ढोलक, नगाड़ा, तयंबक, चेंगिला और रुद्रवीणा ऐसे वाद्य हैं जिनके दक्षिण-पूर्वी एशिया क्षेत्र में ज्यूस हार्प्स, जाइलोफोन, सुलिंग, पी, केनदंग, टफोन, चिंग, क्लोंग खाईक, स्कोर थोम, क्लोंग याओ, गोंग और ट्यूब जिथर नाम से समानांतर वाद्य मौजूद हैं।
डॉ. अमिता शर्मा व अरुणदीप सिंह ने कहा कि बी.एच.यू. जैसे ऐतिहासिक संस्थान में अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के लिए उनके शोधपत्र का चयनित होना और उसके पश्चात उसका वहां प्रस्तुतिकरण होना अपने आप में अत्यंत ही गर्व का विषय है और ऐसा अवसर प्रदान करने के लिए वह सेमिनार के आयोजक बी.एच.यू. के संगीत एवं मंच कला संकाय का आभार प्रकट करते हैं।
Arundeep Singh
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