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53वे भास्कर राव सम्मेलन के चौथे दिन मनमोहक संतूर वादन और खूबसूरत कुचिपुड़ी नृत्य ने दर्शकों को किया मंत्रमुग्ध…

संगीत और नृत्य एक ऐसा माध्यम है जो विभिन्न संस्कृतियों को जहाँ एक साथ जोड़ता है वहीं इससे जुड़े कलाकारों और रसिकजनों को भी आनन्द प्रदान करता है और इसी सांस्कृतिक अंचलों को जोड़ने का अद्भुत कार्य कर रहा है टैगोर थिएटर में चल रहा प्राचीन कला केंद्र द्वारा आयोजित 53वां भास्कर राव नृत्य-संगीत सम्मेलन। सभागार में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्राप्त तथा प्राचीन कला केंद की रजिस्ट्रार गुरु माँ डॉ. शोभा कौसर, प्राचीन कला केंद्र के सचिव सजल कौसर तथा कई गण माननीय अतिथियों की गरिमामयी उपस्थिति में इस शाम कुछ ख़ास इसलिए भी थी क्योंकि प्रख्यात संतूर वादक पंडित भजन सोपोरी के शिष्य पंडित राजकुमार मजूमदार और साथ ही दक्षिण भारत नृत्य शैली की झलक लिए विदुषी मीनू ठाकुर अपने समूह के साथ अपनी बेहतरीन कुचिपुड़ी नृत्य प्रस्तुति देने यहाँ पहुंचे हुए थे !

आज के कलाकारों में से एक पंडित राजकुमार मजूमदार बेहतरीन संतूर वादकों में से एक हैं। और उन्होंने संगीत जगत में अपना एक खास मुकाम बनाया है। संगीतकारों के परिवार में जन्मे राज कुमार मजूमदार देश के उभरते कलाकारों में से एक बहुमुखी संतूर वादक हैं। प्रदर्शन की एक अनूठी शैली और ध्वनि की गुणवत्ता के लिए जाने जाने वाले, उन्हें सभी संगीत प्रेमियों द्वारा अत्यधिक सराहा और पसंद किया जाता है, विशेष रूप से अपनी दोनों भुजाओं को प्रसन्न शैली में बजाते हुए संतूर बजाने के उनके शानदार कौशल के लिए।

दूसरी ओर कुचिपुड़ी नृत्यांगना विदुषी मीनू ठाकुर को स्वप्नसुंदरी, पसुमर्थी सीतारमैया और गुरु जयराम राव और वनश्री राव जैसे प्रसिद्ध गुरुओं के संरक्षण में सीखने का सौभाग्य मिला। गहन प्रशिक्षण और अभ्यास के माध्यम से, मीनू कुचिपुड़ी नृत्य की बेहतरीन नर्तकी बन गईं। वर्तमान कुचिपुड़ी नर्तकियों में, मीनू एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं, जिन्होंने दो दशकों से अधिक समय तक मंच पर प्रदर्शन किया है।

कार्यक्रम की शुरुआत पंडित राजकुमार मजूमदार एवं उनकी सुपुत्री एवं शिष्य अनुष्का द्वारा संतूर वादन जुगलबंदी से हुई। उन्होंने पारम्परिक आलाप के माध्यम से मधुर राग “पुरिया धनश्री ” को जोड़ और झाले से विस्तार रूप दिया उपरांत कुछ सुंदर रचनाओं को प्रस्तुत करके इन्होने दर्शकों की खूब तालियां बटोरी । इन्होने ने रूपक ताल एवं तीन ताल में सुन्दर रचनाएँ पेश करके दर्शकों को सहज ही अपने संगीत से जोड़ लिया। लयकारी छंदो से सजी रचनाएँ पेश करके पिता पुत्री ने संतूर वादन का बेहतरीन प्रदर्शन किया। अपने कार्यक्रम का समापन जोरदार झाले से करके साथ ही सवाल जवाब का भी रोचक प्रदर्शन किया उनका साथ देने के लिए प्रसिद्ध तबला वादक पं. सिद्धार्थ चटर्जी ने बखूबी संगत करके चार चाँद लगा दिए ।

इसके बाद प्रख्यात कुचिपुड़ी नृत्यांगना मीनू ठाकुर ने अपने समूह के साथ मंच संभाला। इन्होने ने अपनी प्रस्तुति नवग्रह चरित्रम पेश की जिस में कुचिपुड़ी नृत्य नाटक हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार नौ ग्रहों के बारे में चित्रित कहानियों की पेचीदगियों के माध्यम से शक्ति, विकास, प्रकृति और ग्रहों की गति के प्रभाव को दर्शाता है। “नवग्रह”, जिसमें सूर्य (सूर्य), चंद्र (चंद्रमा), मंगल (मंगल), बुद्ध (बुध), बृहस्पति (बृहस्पति), शुक्र (शुक्र), शनि (शनि), राहु (उत्तर चंद्र मोड) और केतु शामिल हैं। (दक्षिण चंद्र मोड), उनकी प्रकृति, शक्ति और स्थिति के माध्यम से गहरा प्रभाव डालता है जिसे “रस” या सौंदर्यशास्त्र के माध्यम से चित्रित किया गया । यदि ग्रहों का राजा सूर्य, सात घोड़ों वाले रथ पर सवार होकर, पूरी दुनिया को रोशन करता है, तो “चंद्र” शांति देता है। सींग वाले मेढ़े पर तेजी से सवारी करने वाले “मंगल” का क्रोध और उत्साह, या शेर की पीठ पर “बुध” की बुद्धि, समान मात्रा में जीवन पर प्रभाव डालती है। गुरु के धर्म के मार्ग का ज्ञान, हाथी पर दृढ़ता से बैठा हुआ, या शुक्र घोड़े पर सवार “श्रृंगार रस” की स्थिति में, शनि, अपने विनाशकारी क्रोध में, और राहु” और “केतु” सब ग्रहों में नवग्रह-चरितम्” के पहलुओं पर विभिन्न कहानियों कोनृत्य के माध्यम से पेश किया गया । इस प्रकार “नवग्रह-चरितम्” की व्याख्या इस नृत्य नाटिका में प्रस्तुत की गयी। दर्शक इस प्रस्तुति को देख कर मंत्र मुग्ध हो गए

कार्यक्रम के अंत में कलाकारों को उत्तरीय व स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया. सम्मलेन के पांचवें दिन शास्त्रीय गायिका सुजाता गुरव और सरोद वादक राजीव चक्रबरती प्रस्तुतियां पेश करेंगे

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