India News24x7 Live

Online Latest Breaking News

आचार्य श्री 108 सुबल सागर जी महाराज ने क्या कहा…

चण्डीगढ़ दिगम्बर जैन मंदिर सेक्टर 27b में चातुर्मास कर रहे आचार्य श्री सुबलसागर जी महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि हे धर्म बन्धुओं! किसी देश, राज्य, प्रान्त, नगर, गाँव जनपद, समाज परिवार, धर्म, सम्प्रदाय का विकास निहित है तो शिक्षा से। जहाँ शिक्षा है, साक्षरता है वहाँ विकास शीलता है शिक्षा के अभाव में किसी का विकास कर पाना अत्यन्त कठिन कार्य है। सहस्त्रों शिक्षित जनों को एक मनुष्य क्षण भर में समझा सकता है, परन्तु एक अशिक्षित मूर्ख मनुष्य को सहस्त्रों शिक्षक-शिक्षित समझा पाएँ यह दुर्लभ कार्य है। एक ज्ञानी शिक्षित गुरू का शिष्य बन कर जीना श्रेष्ठ है, सहस्त्रों मूर्ख अशिक्षित शिष्यों की. अपेक्षा। ज्ञानियों का सम्पर्क यश-ज्ञान-सम्मान वृद्धि का कारण है, परन्तु अज्ञानियों का सम्पर्क मुर्खता , अपयश, ‘अपमान एवं अज्ञानता का प्रबल कारण है, इसलिए बुद्धिमान – पुरुषों को सदा सानी सुशील लोगों के साथ रहना चाहिए, अन्यथा एकाकी रहना ही श्रेष्ठ है।

शिक्षित व्यक्ति की भाषा, प्रज्ञा और विवेक स्वस्थ होते है। अशिक्षित व्यक्ति की भाषा – बुद्धि, विवेक भिन्नता युक्त रहते है। शिक्षा के साथ बुद्धि भी प्रशस्त होना अनिवार्य है। शिक्षा के साथ-साथ व्यवहारिकता की शिक्षा भी समाज के मध्य रहकर लेना चाहिए। प्रत्येक स्थान पर पुस्तकीय ज्ञान कार्यकारी नहीं होता है। सर्वत्र व्यवहारिक एवं अनुभवज्ञान के साथ पुस्तकीय ज्ञान कार्यकारी होता है। पुस्तकीय ज्ञान तो आधार होता है, पर कार्य तो अनुभव भूत ज्ञान से ही होता है।

यथार्थ में शिक्षा, की उन्नति विनयशील को ही होती हैं विनयहिन विद्या एवं विद्या के फल को प्राप्त नही हो पाते जीवन में श्रेष्ठ शिक्षावान्, विद्यावान् बनना चाहते हो तो विनयतान् बानो, 1 अहंकार भाव का अभाव करो, शिक्षक गुरु ‘के सामने अपनी विघ्यता मत दिखाओ,वहां तो अल्पज्ञ बनकर बैठे, तभी शिक्षक अपनी पूर्ण विद्या आपको दे पाएगा। यदि आप शिक्षक के समक्ष अपनी विशेषता दिखाओगे तो वह फिर शान्त हो जाएगा, क्योंकि अभिमानी को ज्ञान कहाँ ? ज्ञान में अभिमान कहाँ? यह बात पूर्ण सत्य स्वीकारो | इसी में सभी का कल्याण निहित है। सम्पूर्ण शिक्षाओं में अध्यात्म की शिक्षा सर्वोपरी है। जिन्हें अध्यात्म शिक्षा प्राप्त नहीं हुई वे इह लोक वा परलोक अर्थात् उभयलोक में दुःख को प्राप्त करने वाले हैं अशान्ति, क्लेश, ईर्ष्या, डाह, असूया, मात्सर्य से अपने को वे कभी रिक्त नहीं कर पाएँगे । संसार में अध्यात्म से भिन्न जो भी शिक्षाएँ हैं, वे मात्र भौतिक इन्द्रिय सुख की ही पोषक है उनका मात्र एक ही उद्देश्य है कि किसी भी प्रकार से हमारे इन्द्रिय सुखों की पूर्ति होना चाहित। यह जानकारी बाल ब्र. गुंजा दीदी एवं श्री धर्म बहादुर जैन जी ने दी।

लाइव कैलेंडर

September 2024
M T W T F S S
 1
2345678
9101112131415
16171819202122
23242526272829
30  

LIVE FM सुनें