प्राचीन कला केंद्र की 313वीं मासिक बैठक में अशीम चौधरी के सितार की स्वर लहरियों ने मोहा दर्शकों का मन….
प्राचीन कला केन्द्र द्वारा हर माह आयोजित की जाने वाली मासिक बैठकों की 313वीं कड़ी में आज कोलकाता से आये जाने माने सितार वादक पंडित अशीम चौधरी द्वारा सितार वादन पेश किया गया । इस कार्यक्रम का आयोजन केंद्र के एम एल कौसर सभागार में आज सायं 6:30 बजे से किया गया।
पंडित अशीम चौधरी भारतीय शास्त्रीय संगीत में महान इमदाद खानी घराने की परंपराओं का प्रतिनिधित्व करने वाले एक प्रतिष्ठित और स्थापित सितार वादक हैं। उन्हें संगीत से उनके पिता, श्री शिबू चौधरी, जो एक प्रसिद्ध तबला वादक थे, ने परिचित कराया। पाँच वर्ष की आयु में, उन्होंने स्वर्गीय उस्ताद बेंजामिन गोम्स के मार्गदर्शन में सितार सीखना शुरू किया। बाद में वे इमदाद खानी घराने के एक प्रमुख व्यक्ति, आचार्य पंडित बिमलेंदु मुखर्जी के शिष्य बने। गणित में स्नातकोत्तर उपाधि (एमएससी) और एमबीए होने के बावजूद, उन्होंने खुद को देश के सर्वश्रेष्ठ सितार वादकों में से एक के रूप में सफलतापूर्वक स्थापित किया। वे ऑल इंडिया रेडियो (एआईआर) और दूरदर्शन के ‘टॉप’ ग्रेड के सितार वादक हैं।
वे भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) के एक स्थापित ग्रेड के पैनलबद्ध कलाकार हैं। उन्हें उनकी विलक्षण प्रतिभा के लिए कई पुरस्कार मिले हैं, जिनमें पश्चिम बंगाल राज्य संगीत पुरस्कार (1989 में प्रथम स्थान) और श्रृंगेर संसद, मुंबई से प्रतिष्ठित “सुर मणि” उपाधि शामिल है। उनका सितार डीडी अगरतला के सिग्नेचर ट्यून में शामिल था।
आज के कार्यक्रम में अशीम चौधरी ने राग रागेश्री से कार्यक्रम की शुरूआत की । इसके उपरांत आलाप से शुरू करके जोड़ झाला का खूबसूरत प्रदर्शन किया । इसके पश्चात तीन ताल से सजी विलम्बित गत पेश की । सितार पर खूबसूरत धुनों का प्रदर्शन करते अशीम की उंगलियों के जादू से दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए । इसके उपरांत द्रुत ताल में निबद्ध मध्य लय तीन ताल में मधुर गतें प्रस्तुत की । कार्यक्रम का अंत इन्होंने भैरवी राग में सजी ठुमरी से किया से किया। इनके साथ प्रतिभाशाली तबलावादक पंडित देबाशीष अधिकारी ने बखूबी संगत की ।
कार्यक्रम के अंत में केन्द्र की रजिस्ट्रार डॉ.शोभा कौसर, सचिव श्री सजल कौसर एवं श्रीमती मीरा मदान ने कलाकारों को सम्मानित किया।


