फेफड़ों का कैंसर अब सिर्फ स्मोकर्स की बीमारी नहीं: पारस हेल्थ ने समय पर जांच की अपील की….
पंचकूला, 1 अगस्त : वर्ल्ड लंग कैंसर डे के अवसर पर पारस हेल्थ ने फेफड़ों के कैंसर के खिलाफ अपनी लड़ाई को और तेज करते हुए जनता से समय पर जांच और लक्षणों को नजरअंदाज न करने की अपील की। विशेषज्ञों के अनुसार भारत में साल 2025 तक लंग कैंसर के 1.1 लाख से अधिक नए मामले सामने आ सकते हैं, जिनमें करीब 81,219 पुरुष और 30,109 महिलाएं होंगी। यह कैंसर से होने वाली कुल मौतों में लगभग 8% का योगदान देगा।
डॉक्टरों का मानना है कि वायु प्रदूषण, तंबाकू का सेवन, और जेनेटिक कारण इस बीमारी को बढ़ा रहे हैं। खास बात यह है कि अब यह बीमारी गैर-धूम्रपान करने वालों में भी तेजी से देखी जा रही है।
पारस हेल्थ ने जानकारी दी कि जिन मरीजों का कैंसर शुरुआती चरण में पकड़ा गया, उनमें लगभग 60% तक रिकवरी देखी गई। इन मरीजों को इम्यूनोथेरेपी और टार्गेटेड थेरेपी जैसे एडवांस्ड इलाज दिए गए, जिनके नतीजे काफी सकारात्मक रहे।
डॉ. राजेश्वर सिंह, डायरेक्टर – मेडिकल ऑन्कोलॉजी, पारस हेल्थ ने कहा कि लंग कैंसर अब केवल धूम्रपान करने वालों की बीमारी नहीं रही। हम कई ऐसे मरीज देख रहे हैं जो कभी स्मोक नहीं करते, फिर भी उन्हें यह बीमारी हो रही है। इसका मुख्य कारण वायु प्रदूषण और अनुवांशिक कारक हो सकते हैं। इसलिए समय पर जांच और जागरूकता बहुत जरूरी है, ताकि बीमारी की पहचान जल्दी हो सके और इलाज के अच्छे नतीजे मिल सकें।
डॉ. चित्रेश अग्रवाल, एसोसिएट डायरेक्टर, मेडिकल ऑन्कोलॉजी ने कहा कि लंग कैंसर का इलाज तभी कारगर होता है जब बीमारी समय रहते पकड़ में आ जाए। बहुत से लोग लगातार खांसी, सांस फूलना या वजन कम होने जैसे लक्षणों को मामूली समझकर नजरअंदाज कर देते हैं, जिससे बीमारी देर से पकड़ में आती है और इलाज कठिन हो जाता है। चेतावनी संकेतों को गंभीरता से लेना और डॉक्टर से तुरंत संपर्क करना बेहद जरूरी है।
नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम के अनुसार भारत में साल 2025 तक कुल कैंसर मामले 15.7 लाख तक पहुंच सकते हैं। यदि लंग कैंसर की पहचान पहले स्टेज (स्टेज I) में हो जाए, तो 5 साल तक जीवित रहने की संभावना 60–70% तक हो सकती है, जबकि आखिरी स्टेज (स्टेज IV) में यह दर 20% से भी कम रह जाती है।
पारस हेल्थ लगातार कैंसर के इलाज में सुधार के लिए काम कर रहा है। अस्पताल का लक्ष्य है कि मरीजों को समय पर जांच, उन्नत इलाज और समुचित जागरूकता मिले, जिससे उनकी जीवन गुणवत्ता बेहतर हो सके और मृत्यु दर कम हो।


