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आचार्य श्री सुबल सागर जी महाराज..

चंडीगढ़ दिगम्बर जैन मंदिर सेक्टर 27 में सिध्दों की आराधना कर सिद्ध पद पाना जिन्हें अभीष्ट है और दूसरो को प्रेरणा वा आशीर्वाद देकर सिद्धों की आराधना,भक्ति,पाठ आरती व विधान,जाप आदि मंगलीक कार्यो में लगाने वाले परम पूज्य आचार्य श्री सुबल सागर जी महाराज जिन्हें हम सिद्धचक्र आराधना वाले बाबा के नाम से जानते हैं उन्होंने इस संसार में दुखी लोगो के कष्टों के दुखो को दूर करने का उपाय बताते हुए कहा कि भक्ति करने वाले के सारे कष्ट ,दुःख ,वेदना सब क्षय को प्राप्त होते और अनंत सुख-वैभव-सम्प्रदा भी प्राप्त होती हैं बस आवश्यकता हैं तो भरोसा,विश्वास,श्रद्धा,आस्था की क्योकि हम भक्त भगवान से कहते हैं भक्ति के वश होकर की “मेरी ती तोसे बनी ताते करते पुकार” |

हे भगवान मैं आपके द्वार पर आया हु क्योकि मुझे पता हैं की मेरे दुखो को दूर करने में कोई समर्थ नही हैं | सारे ही लोग किसी न किसी प्रकार से दुःख,कष्ट को झेल रहे, एक मात्र आप ही हैं जो सुख के भंडार हैं| लोक में कहावत हैं की जिसके पास जो होता है वह उस वस्तु को देता है इसीलिए विश्वासकहाँ करना चाहिए आज के युग में प्रत्येक मनुष समझदार हैं|

भगवान की भक्ति, पूजा, जाप आदि के दुवारा मनुष्य अपने पाप कर्म को मन्द करके या उसको नष्ट कर पुप्य कर्म के उपार्जन से संसार के वैभव को प्राप्त कर लेता हैं| यह हम विचार करे की भगवान देने वाले तो नही हैं, भक्त एक मात्र श्रद्धा विश्वास के साथ जो कुछ करता है यह श्रदा ही चमत्क्कर को करने वाले हैं श्रद्धा पूर्वक नमस्कार करने पर ही चमत्कार घटित होते हैं| वीतराग धर्म में पंच परमेष्ठी, सच्चे देव-शास्त्र गुरुओ के ऊपर भरोसा करना ही सम्यक्व हैं यह सम्य्क्तव ही श्रद्धा का पर्यायावाची हैं | वर्तमान परिवेश में एसी कई घटना हैं जो ठेला पर कपड़ो बेचते थे लेकिन गुरु महाराज की कृपा से उम्होने बड़ी ही भक्ति के साथ तन,मन,वा धन,से सिद्धो की भक्ति, आराधना,जाप,विधान किया और आज उनकी बड़ी-बड़ी एक नही कई दुकाने हैं यह प्रत्यक्ष घटना हमे देखने मिलती हैं| ऐसी सैकड़ों घटनायें प्रत्यक्ष हैं इसीलए गुरुदेव कहते हैं श्रावको को अपनी जिन्दगी में एक बार अपना पर्सनल विधान अपनी शक्ति अनुसार करना चाहिए| यह भक्ति आज नही तो कल जरुर फल देती है यह जानकारी बाल ब्र. गुंजा दीदी एवं श्री धर्म बहादुर जैन जी ने दी |