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सहजता और सरलता ही जीवन की सफलता है – आचार्य श्री 108 सुबल सागर जी महाराज…

चड़ीगढ़ दिगम्बर जैन मंदिर में धर्म सभा को संबोधित करते हुए आचार्य श्री सुबल सागर जी महाराज ने कहा कि हे धर्म बन्धुओं-सहजता मानव जीवन की पहचान है। माया छल कपट में मानवता का अंश भी नहीं होता। सच्ची मानवता को प्राप्त करना है तो सहज जीवन जीना सीखो। सहजता का जीवन जीना व्यक्ति के लिए एक बड़ी तप साधना है। हीन भावना शून्य हुए बिना, इच्छा निरोध के बिना सहज जीवन नहीं जिया जा सकता है। सहज जीवन जीने के लिए व्यक्ति के अंदर आर्जव मार्दव धर्म की आवश्यकता है। अहंकारी और मायावी दोनों ही सरलता वा सहजता से जीवन नहीं जी पायेंगे, माया जीवन शैली अपनाने के लिए मान, अहंकार, मायाचारी का त्याग होना चाहिए।

सहजता एक अमूल्य साधना है। साधक धीरे-धीरे उस साधना में उत्तीर्णता को प्राप्त करता है। सहज जीवन का आनन्द तो भव्य जीव ले लेता है उसके सामने सम्पूर्ण माया तृण वत् देखने में आती है। सहज जीवन जीने से सत्य बोध सहज में ही हो जाता है।

मूर्ख मनुष्य पर से प्रभावित होकर असहज होकर क्लेश, अशान्ति को प्राप्त होता है। तथा आत्म शान्ति से वह अपरिचित होता है। सबसे भिन्न होकर ही सहनता की उपलब्धि होती है स्त्री, पुत्र, वस्त्र, आभूषण, मकान आदि के राग में द्वेषता की प्राप्ति होती है। पर से ममत्व भाव सहनता को मग्ड कर देता है। व्यक्ति की इच्छाएँ जितनी कम होती जाएंगी वह व्यक्ति उतना ही सरलता, सहजता से वृद्धि को प्राप्त होता जाएगा। व्यक्ति अपनी इच्छाएँ के कारण सहज नहीं रह सकता क्योंकि इच्छाओं की पूर्ति के लिए अनेक माया भाव के उपक्रम को व्यक्ति अपनाता है। सहज व्यक्ति सभी का प्रिय और आदेश होता है। विश्व में विश्वास पात्र बनना चाहते हो तो सहनता लाओ। सहजता, सरलता, माया रहित के बिना आप अपने सम्बंधिओं के विश्वास पात्र भी नहीं बन सकते हो, फिर विश्व के विश्वास पात्र कैसे बनोगें। सहज व्यवहार से परमार्थ तक की यात्रा सहन, सरल हो जाती है। सहजता आत्मोन्नति का परम बीज हैं इसके बिना मोक्षफल असम्भव है। व्यवहार में इतने सहज हो जाओ कि लोग पानी की शीतलता को भूलकर सहज पुरुष का उदाहरण देने लगें। यह जानकारी संघस्थ बाल ब्र. गुंजा दीदी एवं श्री धर्म बहादुर जैन जी ने दी ।