धैर्य ही विपत्तियों से रक्षा करता है – आचार्य श्री 108 सुबल सागर जी महाराज…
चण्डीगढ़ दिगम्बर जैन मंदिर सेक्टर 27बी में धर्म सभा को संबोधित करते हुए आचार्य श्री सुबल सागर जी महाराज ने कहा कि धैर्य मनुष्य जाति का आभूषण है। वे लोग सम्पूर्ण लोक मे श्रेष्ठ गुणी होते हैं जो प्रत्येक कार्य का निर्णय धैर्यता से लेते हैं और अधीरता से अपनी आत्मा की रक्षा करते हैं। धीर पुरुष के धैर्य को देखकर कष्ट भी कष्ट में पड़ जाते हैं, उन्हें विचारना पड़ता है कि यह कितना महान् है, जो मेरे होने पर भी धृति-भाव [धैर्य भाव] से बैठा है। अधीरों का मित्र धैर्य है। अधीरता मानसिक पीडा के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं देती, जबकि धैर्य शारीरिक मानसिक, वाचनिक सम्पूर्ण विपदाओं से रक्षा करता है।
अधीरता व्यक्ति के अन्दर अनेक प्रकार के अवगुणों को उत्पन्न करा देती है। क्षमादि गुणों का तो अधीर व्यक्ति में अवकाश ही नहीं होता है। अधीर व्यक्ति स्थिरता को प्राप्त नहीं कर सकता है उसके मन में तरह- तरह के संकल्प-विकल्प उठते रहते हैं, जिसके कारण उसका मन स्थिरता को प्राप्त नहीं हो पाता है। आत्मशान्ति उससे कोसों दूर चली जाती है, अगर आत्मशान्ति को चाहिए हैं, तो सबसे पहले अपने मन को मजबूत करो, धैर्य रखो तभी कहीं धीर पुरुष के अंदर ही सुख शांति का वास हो सकता है। वे लोग लोक में महान हो गए जो अधीरता रूपी विष से दूर हो गए, और धैर्य रूपी अमृतरस का पान कर गए। धीरज धारण करने से बिगड़ते कार्य भी सँभल जाते है। धैर्यगुण सर्वगुणों का आधार हैं, बिना धैर्य भूमि के किसी भी गुण को स्थित होने को कोई स्थान नहीं है। सम्पूर्ण गुणों को मंडित करने का अधिकार धैर्य के पास है। कीर्ति धैर्य का मुख देखती है, बिना धैर्य के कीर्ति अपना आगे नहीं रख पाती। यदि आपको कीर्ति -यश- सम्मान पाने की इच्छा है तो प्रत्येक कार्य के करने में तथा बात करने में धैर्य को अवश्य धारण करना सोच विचार कर किया गया काम ही समस्त सफलताओं को देने वाला है। सज्जन पुरुषों को धैय धारण करने का निरंतर अभ्याश करते रहना चाहिए ।
विपत्तिकाल में भी धैर्य नहीं छोड़ना चाहिए। जो विपत्ति आने पर धैर्य को छोड़ देता है उसे विपत्तियाँ महाकष्ट देती है और जो धीर पुरुष विपत्ति काल में धैर्य नहीं छोड़ते उन्हें विपत्तियाँ स्वतः छोड़कर चली जाती हैं। धीर पुरुष के सामने अनेक बार विषमताओं के काले बादल आते हैं, परन्तु धैर्य की हवा से उन्हें हटाकर अलग कर देते हैं। कष्टों के काले बादल भी धैर्यशील का कुछ नहीं कर पाते है। यह जानकारी संघस्थ बाल ब्र. गुंजा दीदी एवं श्री धर्म बहादुर जैन जी ने दी|


