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समस्त किन्नर समाज द्वारा सेक्टर 37 भगवान परशुराम भवन में आयोजित अर्धनारेश्वर शिवमहापुराण कथा का चतुर्थ दिवस…

समस्त किन्नर समाज द्वारा सेक्टर 37 भगवान परशुराम भवन में आयोजित अर्धनारेश्वर शिवमहापुराण कथा के चतुर्थ दिवस में सद्भावना दूत भागवताचार्य डा रमनीक कृष्ण जी महाराज ने पावन सती चरित्र श्रवण कराते हुए बताया के एक बार त्रेता युग में भगवान भूत भावन भोलेनाथ मां सती के संग कुंभज ऋषि के पास कथा श्रवण करने गए। बहुत दिनों तक रामनाम की चर्चा हुई। जब भगवान कथा श्रवन करके वापिस लोट रहे थे, उसी समय भगवान श्रीराम भगवती सीता के वियोग में वनवास के समय में थे। शिवजी ने राम जी को देख के प्रणाम किया परंतु सती को संदेह हुआ के ये कैसे भगवान हैं जो पत्नी के वियोग में भटक रहे हैं। इस समय सती के सीता बनकर राम जी को परीक्षा ली, जब बार बार परीक्षा लेकर भी सती न मानी तब भगवान श्रीराम ने पूछ ही लिया हे मां! आज अकेले वन में कहां भ्रमण कर रही हो मुझे मेरे पिता भगवान शिव दिखाई नही दे रहे? सती जान गई के मैंने स्वयं भगवान की परीक्षा ली है। शिव के पूछने पर भी सती ने यही कहा के मैं उन्हे प्रणाम करके आई हूं। बार बार पूछने पर भी जब सती ने कुछ मां बताया तब भगवान शिव ने मन ही मन विचार किया के जब सती ने सीता का स्वरूप बनाया है तो अब मां इन्हे कैसे स्वीकार कर सकता हूं। इसी समय दक्ष ने एक यज्ञ किया जिसमें सबको बुलाया परंतु भगवान शिव को यज्ञ में नही बुलाया। सती ने शिव से यज्ञ में जाने की आज्ञा मांगी। भगवान शिव ने बड़ा समझाया के देवी यद्यपि पिता के घर, गुरु के द्वार, और भगवान की कथा में बिन बुलावे भी हमें जाना चाहिए, किंतु जहां सम्मान नही हो वहां विचार करके ही जाना चाहिए। सती ना मानी तब भगवान शिव ने मन ही मन विचार किया होई ही सोई जो राम रची रखा, को कही तर्क बढ़ावा साखै।। सती के संग शिव के गण गए। सती को देख किसी को प्रसन्नता नही हुई, केवल एक मां ही थी जो मन से मिली। यज्ञ में सब देवताओं के भाग देखे पर जब शिव का भाग यज्ञ में दिखाई नही दिया तब सती दक्ष से क्रोध में बोली के शिव आशुतोष भगवान हैं, जिनके लिए सारा जगत निर्लेप है, जो मात्र जीव के भावों से प्रसन्न हो जाते हैं। हे दक्ष जो शिव से द्रोह रखते हैं, उन्हें जगत में कहीं कोई स्थान नहीं मिलता। यूं कहके सती ने उसी समय अग्नि प्रकट की ओर उसी यज्ञ अग्नि में सती ने अपने तन को जला डाला।

शिव गणों ने दक्ष के यज्ञ को विध्वंस कर दिया। सब देवताओं को आंख कान नाक विहीन कर दिया। भगवान शिव की समस्त देवताओं ने स्तुति की। देवाधिदेव महादेव भगवान शिव प्रसन्न हुए। और पुनः सती ने भगवान शिव की पूर्ण आराधना करके पार्वती बनकर भगवान शिव को पति रूप में पाया। आज कथा में बड़े ही आनंद के साथ भगवान शिव का विवाह मां पार्वती संग मनाया गया जिसमे अनेकों श्रद्धालु उपस्थित रहे। कथा का आयोजन आगामी 14 अक्टूबर तक रहेगा।

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