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सम्यग्दर्शन करंट है मोक्षमार्ग में आचार्य श्री सुबल सागर जी महाराज…

चडीगढ़ दिगम्बर जैन मंदिर सेक्टर 27बी में चार्तुमास कर रहे आचार्य श्री सुबल सागर श्री महाराज ने कहा कि- हे भव्य प्राणियों जो भी मोक्ष को प्राप्त हुए है, वे सब सम्यग्दर्शन से ही हुए है, ऐ सम्यग्दर्शन का महत्त्व है अब ऐसा मान लीजिए जैसे हमारे पास नमक है बेलन है, पानी है अग्नि है आदि सब है लेकिन आटा नहीं है तो क्या रोटी बन सकती है इसी प्रकार हमारे पास या साधु महाराज जी के पास तप है जप है, व्रत है, नियम है, धर्म रूप आदि सब क्रियाऐं है लेकिन सम्यग्दर्शन नहीं तो क्या ऐ सारी क्रिया हमें मोक्ष को प्राप्त करा सकती है अर्थात् नहीं करा सकती है मानना चाहिए कि सम्यग्दर्शन एक वह करंट है जो सारी मशीनों को चालू कर देता है। कितनी ही मशीने हमारे पास पड़ी हो एक करंट के मिलने पर वह काम आने लगती है। यहाँ करंट को सम्यग्दर्शन की उपमा दी है एक बार सम्यग्दर्शन के हो जाने पर उस जीव को मोक्ष प्राप्त हो जाऐगा आज नहीं तो कल, कल नही परसो मोक्ष तो नियम से प्राप्त हो ही जाऐगा। कितना ही तप धारण कर लिया जाए अर्थात 12 प्रकार का तप होता है कितना हीकठिन से कठिन ध्यान अनशन उनोदन को धारण कर लिया जाए सम्यग्दर्शन के बिना वह कार्यकारणी नहीं है इसके साथ ही साथ और कह दिया कि कितना ही ज्ञान भी प्राप्त कर लो कितना ही चरित्र को अंगीकार कर लो कितना ही दूसरों को संदेश दे दो लेकिन एक सम्यग्दर्शन रूपी करंट के होने पर ही सब कार्य यथायोग्य रीति से काम करते हुए अनंत सुख को प्राप्त कर हमेशा के लिए सुखी हो जाते हैं

सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चरित्र ऐ तीनों ही आत्मा के ही रूप है इनमें जो भिन्नता को कहते है वह केवल शब्द रूप ही है। तीनों में अभिन्नता कहीं है। इसको एक योगी/ साधु पुरुष ही जान सकते है सामान्य मनुष्य नहीं समझ सकते है। रत्नत्रय को आत्मा का ही धारी है निश्चय नय से हमारी आत्मा तो शुद्ध है व्यवहार नय से उसमें कर्म कालिमा लगी हुई है। कर्म कालिमा लगी होने के कारण वह रत्नत्रय प्रगट रूप में नहीं है। जैसे ही वह कर्म रुपी कालिमा दूर होगी वैसे ही शुद्ध रत्नत्रय धर्म प्रगट हो जायेगा । अर्थात् सूर्य तो है अभी बादलों से ढका हुआ इसलिए हम कह रहे है कि सूर्य नहीं है। जैसे ही हवा चलेगी बादल हटेंगे तो सूर्य प्रगट हो जाऐगा। और सारे जगत, को प्रकाशित कर देगा। उसी प्रकार कर्म रूपी कालिमा के हटते ही हमारी सूर्य रूपी आत्मा प्रगट होकर उस मोक्ष को प्राप्त कर लेगी।

आज प्रातः कालीन बेला में शांतिधारा ‘करने का सौभाग्य लखनऊ जैन समाज के अध्यक्ष डॉ. संजीव जी जैन को प्राप्त हुआ।

यह जानकारी श्री धर्म बहादुर जैन जी ने दी।