प्राचीन कला केंद्र द्वारा आयोजित 309 मासिक बैठक का आयोजन…..
अग्रणी सांस्कृतिक संस्था प्राचीन कला केन्द्र द्वारा 309वीं मासिक बैठक का आयोजन एम एल कौसर सभागार में सायं 6:30 से किया गया। जिसमें कोलकाता से आये राहुल देव मंडल ने भरतनाट्यम नृत्य की जोरदार प्रस्तुति से दर्शकों का दिल जीत लिया ।
कोलकाता के राहुल देव मंडल भारत के एक प्रख्यात भरतनाट्यम कलाकार,समर्पित शोधकर्ता और शिक्षक हैं। वे एक राष्ट्रीय विद्वान और प्रतिष्ठित रवींद्र भारती विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर हैं। वे अपनी अग्रणी अवधारणा नृत्य योग सूत्र के माध्यम से भरतनाट्यम और योग दर्शन के अनूठे संश्लेषण के लिए प्रशंसित हैं। उन्हें नृत्यचूड़ामणि, श्रृंगारमणि, नृत्य कला रत्न जैसी प्रतिष्ठित उपाधियों से सम्मानित किया जा चुका है और वे राष्ट्रीय दूरदर्शन (प्रसार भारती, भारत सरकार) के ‘ए’ ग्रेड के कलाकार हैं। उन्हें राष्ट्रपति भवन से प्रतिष्ठित “राष्ट्रीय युवा कृति सम्मान” मिला, जो पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम द्वारा प्रदान किया गया था। उन्होंने कलाकर्म फाउंडेशन की स्थापना की, जो भरतनाट्यम और नृत्य-योग के लिए एक अग्रणी केंद्र है। राहुल देव एक प्रकाशित लेखक भी हैं। उनकी रचनाएँ – “नृत्य योग सूत्र: शरीर और आत्मा के बीच एक बंधन” (एशियन पब्लिकेशन, 2015), “अभ्यास” (निर्देशात्मक सीडी के साथ), और “भरतनाट्यम पाठशाला” (2024, बोईवाला कैफ़े) – भारत और विदेशों में छात्रों और उत्साही लोगों द्वारा व्यापक रूप से उपयोग की जाती हैं। राहुल देव ने भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, सिंगापुर, बैंकॉक और बांग्लादेश के प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नृत्य समारोहों में अपनी कला का प्रदर्शन किया है।
आज के कार्यक्रम में सबसे पहले गणेश वंदना:जोकि भरतनाट्यम कार्यक्रम की उद्घाटन प्रस्तुति गणेश वंदना से शुरू होती है, जो भगवान गणेश, विघ्नहर्ता और शुभ आरंभ के अग्रदूत, का आह्वान है। इसके उपरांत ‘अजम निर्विकल्पम’ जोकि एक गहन संस्कृत रचना है जिसे भारत के महानतम दार्शनिक-संतों में से एक, आदि शंकराचार्य ने लिखा था। इस कालातीत भजन में, शंकराचार्य ईश्वर के निराकार, शाश्वत औरअपरिवर्तनशील स्वरूप का गुणगान करते हैं – अजन्मा (अजम) और निर्गुण (निर्विकल्पम) सार जो समस्त अस्तित्व में व्याप्त है। शांत राग मोहनम में रचित और खंड चापू तालम की मनोहर लय में प्रस्तुत, यह वंदना भगवान गणेश को उनके शुद्धतम पारलौकिक रूप में, नाम और रूप से परे, फिर भी अपने भक्तों के प्रति सदैव दयालु आह्वान करने का प्रयास करती है। नाज़ुक हाव-भाव (मुद्राएँ), भावपूर्ण अभिनय और लयबद्ध पद-चाल के माध्यम से, नर्तक गणेश जी का आशीर्वाद मांगता है, उनकी दिव्य कृपा की कामना करता ह। इसके उपरांत राहुल ने गोकुल निलय जो एक भरतनाट्यम गायन है। इसे कृष्ण कीर्तनम भी कहा जा सकता है। कृष्ण, जो गोकुल में रहते थे, सभी पर कृपा करते हैं। उन्होंने ही अपनी बांसुरी बजाते हुए गोवर्धन पर्वत को उठाया था। उन्होंने ही राक्षसों का नाश किया और देवताओं को बचाया था। इस गायन में भगवान कृष्ण की स्तुति की जा रही है। ये गीत राग विंपलश्री और ताल आदि में निबद्ध है। कार्यक्रम के अगले भाग में शिवस्तुति: महादेव शिव संभो महादेव शिव संभो भगवान शिव के आनंदमय नृत्य का वर्णन करने वाले गीतों में से एक है। यह सृष्टि और विनाश में संतुलन बनाने वाले ब्रह्मांडीय नर्तक शिव का उत्सव है। नटराज को अक्सर भारतीय शास्त्रीय नृत्य के शुभंकर के रूप में दर्शाया जाता है और इस नृत्य के माध्यम से उनकी पूजा की जाती है। नटराज को ब्रह्मांडीय आभा का प्रतीक माना जाता है और इसलिए कलाकार इस नृत्य में उनकी पूजा करते हैं। ये राग
रेवती और ताल: आदि में निबद्ध है। इसके उपरांत शब्दम: पेश किया गया इस भावपूर्ण प्रस्तुति में, नर्तक भगवान कृष्ण – जो नटखट ग्वाल बालक हैं और वास्तव में स्वयं परम भगवान, श्री पद्मनाभ हैं – के युवा दिव्य कारनामों के चंचल किन्तु गहन प्रसंगों को जीवंत करता है।
गोपिकाएँ – कमल-नेत्र वाली कन्याएँ – अपने दैनिक कार्यों में लीन हैं, नदी के किनारे स्नान कर रही हैं। लेकिन तभी, कृष्ण प्रकट होते हैं। वह चुपके से उनकी रेशमी साड़ियाँ चुरा लेते हैं और एक पेड़ पर चढ़ जाते हैं और उनकी निराशा को एक चिढ़ाने वाली मुस्कान के साथ देखते हैं
मासूम युवतियाँ सवाल करती हैं—हे प्रभु, क्या यही आपका धर्म है? मज़ाकिया शरारतें यहीं खत्म नहीं होतीं। प्रेम से मथा हुआ और अटारी में सुरक्षित रखा हुआ मक्खन, कृष्ण की चौकस निगाहों के नीचे गायब हो जाता है। वह मटका तोड़ते हुए अपने नन्हे हाथों से प्याला भरता है, और हर बूँद पी जाता है, पीछे केवल हँसी और खाली बर्तन छोड़ जाता है। गोपिकाएँ, भ्रमित होकर भी मंत्रमुग्ध होकर पूछती हैं—हे प्रिय मसखरे, क्या यही आपकी बुद्धि है? वे उसे याद दिलाती हैं—आप लक्ष्मी के पति हैं, ब्रह्मांड के स्वामी! फिर भी यहाँ, आप गाँव की साधारण गलियों में घूमते हैं, चरवाहों को छेड़ते हैं, पहाड़ियों के बीच छिपते हैं, अपनी मनमोहक मुस्कान बिखेरते हैं। अंत में, नर्तकी कृष्ण के समक्ष नतमस्तक होती है – चंचल बालक, गुप्त प्रभु, शाश्वत शरणस्थली – और विनम्र अभिवादन करती है: आपकी जय हो, श्री पद्मनाभ! मैं आपके चरण कमलों में नमन करती हूँ।” ये खूबसूरत प्रस्तुति राग मल्लिका तथा ताल मिश्रचप्पू से सजी थी। नृतक ने इस प्रस्तुति में नृत्य के साथ साथ सुंदर भाव भंगिमाएं भी पेश की। कार्यक्रम की अंतिम प्रस्तुति प्रकृति कीर्तनम् प्रकृति माँ के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करती है जिन्होंने हमें अत्यंत प्रेम और देखभाल से पोषित किया है। महाकवि रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा रचित यह कृति सभी ऋतुओं के राजा, बसंत ऋतु के आगमन को समर्पित है।
कार्यक्रम के अंत में कलाकार को उत्तरीया एवं मोमेंटो देकर सम्मानित किया गया इस कार्यक्रम में केंद्र की रजिस्ट्रार गुरु शोभा कौसर सचिव श्री सजल कौसर , जानी मानी भरतनाट्यम गुरु सुचित्रा मित्रा भी उपस्थित थे।


