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आचार्य श्री 108 सुबल सागर जी महाराज 25.11.2023…

चंडीगढ़ दिगंबर जैन मंदिर सेक्टर 27 बी में विराजमान आचार्य श्री सुबल सागर जी महाराज ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि सफलता और असफलता रूपी दो धाराओं के मध्य मानव की समूची जिंदगी गुजर जाती है असफल होने वाला कभी भी पुरुषार्थ के बल पर सफलता हासिल कर सकता है और सफल व्यक्ति को भी नीचे उतरना पड़ सकता है कोई भी उसका रिकॉर्ड तोड़कर उसे पीछे के पायदान (सीडी)पर खड़ा कर सकता है।

गुरुदेव ने कहा कि जीवन में न तो सफलता स्थाई है और ना ही असफलता। हमें न तो सफलता के आने पर घमंड करना चाहिए और न ही असफलता होने पर निराशा में डूबना चाहिए। दोनों ही स्थितियों में धैर्य व सहजता को हर हाल में बनाए रखना चाहिए किसी ने सत्य ही कहा है सफलता की ऊंचाई पर हो तो धैर्य रखना चाहिए वरना पक्षियों को भी पता है कि आकाश में ठहरने की जगह नहीं होती।

किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त होने पर ज्यादा घमंड नहीं करना चाहिए यह पुण्य के कारण प्राप्त हुई है कब पुण्य पाप में बदल जाए यह कोई कह नहीं सकता है क्योंकि गुरुदेव कहते हैं कि सबके दिन एक से नहीं होते हैं। वह कहते हैं ऐसे भी दिन देखने में आते हैं कि जहां राजा महाराजा रहते थे वह महल अब खंडर हो गए हैं वहां अब कोई नहीं रहता, कबूतरों ने अपना घर बना लिया है कोई जाना भी पसंद नहीं करता। और जहां कूड़ा कचरा के ढेर लगते थे वहां अब नई-नई बड़ी-बड़ी बिल्डिंग खड़ी हो गई हैं।

संसार में पुण्य पाप की महिमा चारों तरफ देखने को मिलती है। हमारे देश के प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र मोदी जी जब उनके पास कुछ नहीं था वह भी चाय बेचते थे और आज उन्होंने अपने प्रबल पुरुषार्थ से यह मंत्री पद को भी प्राप्त किया। इस संघर्ष मय जीवन में धैर्य रखने वाला पुण्य आत्मा ही ऐसे सर्वोच्च पद को प्राप्त होते हैं। जीवन कैसा भी हो संघर्ष करने वाला कई संकल्प विकल्पों के बीच भी बैलेंस बनाकर सफलता प्राप्त कर ही लेता है। इसीलिए कभी हार जाने से कभी स्वयं नहीं हारना, हारने वाला धैर्य को साथी ही बनाकर हार को स्वयं हरा देता है और हार से जीत प्राप्त करता है। इसलिए कहा है कि जीवन में ना तो सफलता स्थाई है और ना ही असफलता स्थाई है। यह जानकारी बाल ब्र. गुंजा दीदी एवं श्री धर्म बहादुर जैन जी ने दी