लाइव कैलेंडर

December 2025
M T W T F S S
1234567
891011121314
15161718192021
22232425262728
293031  

LIVE FM सुनें

India News24x7 Live

Online Latest Breaking News

शिक्षक ही देश की सवसे बड़ी पूंजी – आचार्य सुबल सागर जी महाराज…

श्री दिगम्बर जैन मंदिर सैक्टर 27बी चड़ीगढ़ में अज्ञान को हटाने के लिए ज्ञान के प्रकाश को फैलाने के लिए आचार्य श्री 108 सुबल सागर जी महाराज धर्म सभा को संबोधित करते हुए कह रहे हैं, कि हे ज्ञानी आत्माओं ! आज शिक्षक दिवस है। शिक्षा के माध्यम से ही अज्ञान रूपी अंधेरे को दूर कर ज्ञान रूपी प्रकाश से प्रकाशित होकर संसार को समृद्धशाली, विकासवान बनाया जा रहा है। शिक्षक हमारे देश में हमेशा से पूज्य रहे हैं। ये ही देश, राष्ट्र, समाज के आधार स्तंभ है। शिक्षक के रूप में सर्वप्रथम हमारी माँ पिता ही हमें अच्छे संस्कार देकर नैतिकता, व्यवहारिकता को सिखाते हैं। हमारी संस्कृति क्या है इसको हमें समझाते है।

यह शिक्षा 20वीं सदी की देन नहीं है यह तो हमारे पूर्वजों के पूर्वजों के द्वारा चली आ रही है। बस आज प्रचलन बदल गया है। पहले के समय में बड़े-बड़े राजाओं के पुत्र व पुत्री गुरुकुलों में शिक्षा अध्ययन के लिए जाते थे और वे गुरुकुल नगर-ग्राम आदि से दूर रहते थे, वहाँ उन विद्यार्थियों के मानसिक, शारिरक, स्वास्थ्य सभी प्रकार की शिक्षाएं देकर उनको पूर्णता से हर कार्य के लिए सक्षम बनाते थे। इन सबके साथ ही साथ धार्मिक, राजनीति, सामाजिक, व्यापार-व्यवसाय, अस्त्र-शस्त्र और वैध शास्त्र, ज्योतिस आदि सभी क्षेत्रों में पारंगत किया जाता था। जिससे वे अपने देश, राष्ट्र, समाज, परिवार आदि को विकसित कर सकें।

बचपन मे माता-पिता जी के द्वारा दिए गए अच्छे संस्कार उस बच्चे के जीवन विकास की पहली सीढ़ी होती है। पहली सीढ़ी पर कदम रखने के बाद ही, शेष सभी सीढियों को पार कर मंजिल तक पहुंचा जाता है।

आध्यात्मिक क्षेत्र मे देखें तो संसार बढ़ाने वाली बुद्धि को वहीं छोड़कर यह धार्मिक गुरुओं से आर्यिका माता जी से अपने जीवन के विकास के साथ-ही साथ आत्मा का विकास कैसे हो इस ज्ञान को प्राप्त करके ही उस परमात्मावस्था को प्राप्त कर सकते हैं। इस संसार में हमें दुःख देने वाला, कष्ट-वेदना-रोग-शोक को देने वाला हमारा कर्म ही हैं। कोई किसी को कुछ नहीं देता है लेकिन उस कर्म के वशीभूत फल प्राप्त हो तो कोई न कोई निमित बनता ही है। जैसे साँप के निकलने के बाद जो लाइन बनी हुई होती है उसके निकलने के बाद अगर हम उस लाईन को पीटे तो क्या सांप मर जाएगा, नहीं। वैसे ही हम दूसरों पर विलेम करते हैं कि इन्होंने हमें कष्ट दुःख दिया, यही हमारी अज्ञानता है। अज्ञानता ही दुःख का कारण है। ज्ञान प्राप्त करके हम भी सुखी हो सकते है, और सुख ही सुख को बढ़ाने वाला है।

आज हमारा देश कितना विकास कर रहा है कि हम मंगल, चंद्रमा पर पहुंच गए, यह कैसे संभव हुआ तो कारण एक मात्र ज्ञान है। ज्ञान ही सर्वत्र पूज्यनीय है और यह ज्ञान जिस व्यक्ति विशेष के पास है, वह भी पूज्यता को प्राप्त होता है।

यह जानकारी संघस्थ वाल ब्र. गूंजा दीदी एवं श्री धर्म बहादुर जैन जी ने दी।