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राज्य सरकार जांबाज वॉर हीरोज के बहुमूल्य बलिदान को भी कर रही अनदेखा…

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चंडीगढ़:- पाकिस्तान के हमले का मुंहतोड़ जवाब देने वाले प्रॉक्सी वॉर ऑपरेशन मे अपनी जांबाज बहादुरी से दुश्मन देश से लोहा मनवाने वाले वॉर हीरोज के बहुमूल्य बलिदान की पंजाब राज्य सरकार द्वारा अनदेखी की जा रही है। इन वॉर हीरोज के परिवार राज्य सरकार की चौखट पर माथा रगड़ रगड़ कर बुरी तरह से टूट चुके हैं। लेकिन राज्य सरकार है कि टस से मस नही हो रही। अपनी व्यथा को लेकर इन अशोक चक्र वीरता पुरस्कार सीरीज विजेताओं की विधवाएं और उनके बच्चों ने आज मीडिया के सामने अपनी फरियाद रखी।

चंडीगढ़ प्रेस क्लब में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पाकिस्तान के हमले का मुंहतोड़ जवाब देने वाले प्रॉक्सी वॉर ऑपरेशन मे अपनी बहादुरी से दुश्मनों को लोहा मनवाने वाले अधिकारियों और सैनिकों के मरणोपरांत देश के राष्ट्रपति द्वारा उन्हें अशोक चक्र वीरता पुरस्कार से सुशोभित किया गया था। उनकी विधवाओ और बच्चों को बेहतर जीवन यापन के लिए राज्य सरकार को उनकी यथासंभव मदद की अपील की गई थी। अन्य राज्यों ने यहां ऐसे ही बहादुर सैन्य अधिकारियों और सैनिको के बहुमूल्य बलिदान को सच्ची श्रद्धांजलि देते हुए उनके परिजनों की यथासंभव मदद की, लेकिन वहीं पंजाब राज्य सरकार ने इस अशोक चक्र वीरता पुरस्कार को 20 साल से ज्यादा समय बीत जाने पर भी अभी तक मान्यता ही नही दी। जाँबाज फौजियों को मिलने वाला यह पुरस्कार यहां देश के अन्य राज्यों में मान्य है, वहीं पंजाब राज्य सरकार का मानना है कि इन अवार्ड्स की कोई मान्यता ही नही है।

देश की आन बान और शान की खातिर बलिदान देने वाले जांबाजों को ऑनर करने में देश की जनता और सरकारों द्वारा प्रेयर और सांत्वना की कोई कमी नही है। लेकिन वहीं जब इन वॉर हीरोज के परिवारों को ऑनर करने की बारी आती है तो सरकारों में यह दृष्टिकोण गायब नजर आता है।

1998 में बलिदान देने वाले मरणोपरांत शौर्य चक्र पुरस्कार से सम्मानित सिपाही राजिंदर सिंह की पत्नी और बच्चे 23 साल बीत जाने के बाद भी पंजाब सरकार से मान्यता और रोजगार सहायता की बाट जोह रहे हैं।

लेफ्टिनेंट जोगा सिंह, जोकि 1998 में एक सी आई ऑपरेशन के दौरान शहीद हो गए थे और उन्हें मरणोपरांत शौर्य चक्र पुरस्कार से नवाजा गया था, उनका परिवार भी आज तक सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट काट कर अशोक चक्र सीरीज अवार्ड को मान्यता दिलवाने की जदोजहद में परेशान हो चुका है।

वर्ष 1992 में कश्मीर के बारामुल्ला में एक ऑपरेशन में शहीद हुए मरणोपरांत कीर्ति चक्र पुरस्कार से सम्मानित नायब सूबेदार बलदेव राज की विधवा कमला रानी आज भी वर्ष 1994 में तत्कालीन राष्ट्रपति से सम्मान प्राप्त करने वाले उन क्षणों की याद को अपने अंदर समेटे हुए है। लेकिन पंजाब सरकार द्वारा उन जांबाज जवानों की शहादत को नजरअंदाज किया जा रहा है।

मरणोपरांत शौर्य चक्र पुरस्कार से सम्मानित लेफ्टिनेंट कर्नल बचित्तर सिंह की विधवा का कहना है कि पंजाब राज्य सरकार द्वारा के आई ए सैनिकों के बलिदान को पूरी तरह नजरअंदाज किया जा रहा है, उन वीर जवानों को राज्य सरकार की तरफ से कोई ऑनर नही दिया जा रहा।हालांकि उनके शहीद पति का नाम नई दिल्ली के नेशनल वॉर मेमोरियल पर अंकित है।उनके पति द्वारा दिये गए बलिदान के उन दर्दनाक पलों को याद करते हुए वो आज भी सिहर उठती हैं। तब उनकी बेटियां 07 और 08 वर्ष की थी, जिन्हें पालने पोसने में उन्हें कितना संघर्ष करना पड़ा।

जाँबाज सैन्य अधिकारी की युवा बेटी, सुखरूप के सहोता ने बताया, कि सरकार ने कभी भी उनके पिता जी और उनके जैसे अन्य सैन्य अधिकारियों द्वारा दिये गए बहुमूल्य बलिदान को गंभीरता से नही लिया। उन्होंने कहा कि आसाम में उल्फा आतंकवादियों के खिलाफ हुए राइनो ऑपरेशन में बहादुरी की मिसाल पेश करने के लिए उनके पिता जी को आर्मी कमांडर्स कमेंदशन और चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ कमेंदशन से भी पुरस्कृत किया गया था।

पंजाब राज्य सरकार पिछले 02 दशकों से वॉर हीरोज के इन परिवारों को अनदेखा करती आ रही है। राज्य सरकार इन शहीदों के परिवार और उनके बच्चों को किसी भी प्रकार की रोजगार सहायता देने में भी असमर्थ रही है। वॉर हीरोज के इन परिवारों के बार बार के आग्रह के वाबजूद भी सरकार की तरफ से कभी भी सकारात्मक रिस्पांस देखने को नही मिला ।

इंसाफ और समस्या के समाधान के लिए राज्य के मौजूदा मुख्यमंत्री के साथ बैठक के लिए भी वो लोग कई बार रिक्वेस्ट कर चुके हैं, जोकि उनकी आखिरी उम्मीद है।