भारत 2047 में 1.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का ग्रीन मार्केट खोल सकता है….
नई दिल्ली, 26 नवंबर 2025: भारत संचयी हरित निवेशों (cumulative green investments) में 4.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर (360 लाख करोड़ रुपये) को आकर्षित करने और 4.8 करोड़ पूर्णकालिक समतुल्य नौकरियां सृजित करने की संभावना रखता है। यह जानकारी काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) के नए अध्ययन ‘बिल्डिंग अ ग्रीन इकोनॉमी फॉर विकसित भारत’ से सामने आई है। यह अध्ययन बताता है कि भारत 2047 तक सालाना 1.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर (97.7 लाख करोड़ रुपये) की ग्रीन मार्केट की संभावनाएं खोल सकता है। राष्ट्रीय स्तर पर यह अपनी तरह का पहला आकलन है, जो ऊर्जागत परिवर्तन (एनर्जी ट्रांजिशन), सर्कुलर इकोनॉमी और बायो-इकोनॉमी व प्रकृति-आधारित समाधानों (नेचर बेस्ड सॉल्यूशंस) में 36 ग्रीन वैल्यू चेन्स को चिन्हित करता है। ये संयुक्त रूप से विकसित भारत की यात्रा के लिए एक परिभाषित हरित आर्थिक अवसरों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
अक्सर ग्रीन इकोनॉमी को सिर्फ सोलर पैनल और इलेक्ट्रिक वाहनों तक सीमित मान लिया जाता है। लेकिन, यह अध्ययन इसमें मौजूद व्यापक अवसरों को रेखांकित करता है। ये अवसर बायो-बेस्ड मटीरियल (जैव-आधारित सामग्री), कृषि वानिकी, ग्रीन कंस्ट्रक्शन (हरित निर्माण), सतत पर्यटन, सर्कुलर मेन्यूफैक्चरिंग, वेस्ट-टू-वैल्यू इंडस्ट्री और प्रकृति-आधारित आजीविकाओं तक विस्तृत हैं। इनमें से प्रत्येक क्षेत्र अगले दो दशकों में अरबों डॉलर के उद्योग बन सकते हैं और संसाधन सुरक्षा और लचीलेपन को भी मजबूत बना सकते हैं।
इस रिपोर्ट पर आयोजित डायलॉग में ग्रीन इकोनॉमी काउंसिल (जीईसी) का शुभारंभ किया गया। श्री अमिताभ कांत इस समूह के अध्यक्ष हैं। इसमें प्रो. अशोक झुंझुनवाला (आईआईटी मद्रास), श्री दीप कालरा (मेकमाईट्रिप), श्री विनीत राय (अविष्कार ग्रुप), श्री नितिन कामथ (जेरोधा), सुश्री रुचि कालरा (ऑक्सीजो फाइनेंशियल सर्विसेज, ऑफबिजनेस), श्री इस्प्रीत सिंह गांधी (स्ट्राइड वेंचर्स), सुश्री श्रुति शिबुलाल (तमाशा लेजर एक्सपीरियंस), डॉ. श्रीवर्धिनी के. झा (एन एस आर सी ई एल, आईआईएम बैंगलोर) और डॉ. अरुणाभा घोष (सीईईडब्ल्यू के सीईओ और दक्षिण एशिया का प्रतिनिधित्व करने वाले कॉप 30 के स्पेशल एनवॉय) जैसे अन्य प्रतिष्ठित भारतीय नेतृत्वकर्ता भी शामिल हैं। ग्रीन इकोनॉमी काउंसिल भारत को उभरते हुए हरित आर्थिक अवसरों (green economic opportunities) की पहचान करने और उन्हें साकार करने में मदद करेगी।
श्री जयंत सिन्हा, अध्यक्ष, एवरस्टोन ग्रुप और एवर्सोर्स कैपिटल, और पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री ने कहा, “भारत का ग्रीन ट्रांजिशन (हरित परिवर्तन) मूल रूप से सकारात्मक है: यह लाखों नौकरियां सृजित कर सकता है, विकास को रफ्तार दे सकता है, सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार ला सकता है और घरेलू ऊर्जा स्रोतों को अपनाकर राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत बना सकता है। सीईईडब्ल्यू के इस अध्ययन में चिन्हित मूल्य श्रृंखलाएं बताती हैं कि ये खरबों डॉलर के अवसर कहां पर मौजूद हैं। भूमि जैसी बाधाओं को दूर करने के लिए नीतिगत स्थिरता और निवेश को जोखिम मुक्त बनाने के लिए अब मिश्रित वित्त (blended finance) के उपाय आवश्यक हैं। समग्र-सरकार दृष्टिकोण (whole-of-government approach) के साथ, भारत ग्रीन फ्रंटियर वाले विकास मॉडल के संचालन के लिए आवश्यक पूंजी को जुटा सकता है।”
रिपोर्ट लॉन्च के अवसर पर श्री अमिताभ कांत, पूर्व जी20 शेरपा, नीति आयोग के पूर्व सीईओ और जीईसी के अध्यक्ष ने कहा, “जिस तरह से भारत 3 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था से आगे बढ़ रहा है, हम पश्चिम के विकास मॉडल का अनुसरण नहीं कर सकते है। हमारे अधिकांश बुनियादी ढांचे का निर्माण अभी बाकी है, इसलिए हमारे पास शहरों, उद्योगों और आपूर्ति श्रृंखलाओं को सर्कुलैरिटी, स्वच्छ ऊर्जा और बायोइकोनॉमी के आस-पास निर्माण करने का एक अनूठा अवसर मौजूद है। जिस तरह डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे ने भारत को तकनीकी रूप से आगे बढ़ने में सक्षम बनाया है, – सात वर्षों में वह हासिल किया जो दशकों में हो पाता – हमें अब ग्रीन इकोनॉमी में एक छलांग लगानी चाहिए। जहां दुनिया का अधिकांश हिस्सा पुरानी प्रणालियों में फंसा हुआ है, सर्कुलर और संसाधन-कुशल वैल्यू चेन्स पर निर्मित एक विकसित भारत एक नये विकास मार्ग को परिभाषित कर सकता है और हरित विकास के लिए एक वैश्विक बेंचमार्क स्थापित कर सकता है।”
अभिषेक जैन, डायरेक्टर, ग्रीन इकोनॉमी एंड इम्पैक्ट इनोवेशन, सीईईडब्ल्यू, ने कहा, “ग्रीन इकोनॉमी की दिशा में आगे बढ़ना भारत के लिए न केवल नौकरियां और आर्थिक समृद्धि लाएगा, बल्कि हमें आत्मनिर्भर बनाने के लिए भविष्य के ईंधन और संसाधनों को जुटाने में भी हमारी मदद करेगा। आज भारत अपनी जरूरत का 87 प्रतिशत कच्चा तेल आयात करता है, जो इलेक्ट्रिक वाहनों, सौर ऊर्जा और अगली पीढ़ी के बायो-एथेनॉल व बायो-डीजल के साथ शून्य हो सकता है। हम अपनी जरूरत का 100 प्रतिशत लिथियम, निकेल और कोबाल्ट और यहां तक कि 93 प्रतिशत तांबे के अयस्क का आयात करते हैं, लेकिन सर्कुलर इकोनॉमी के साथ ये सभी आयात शून्य हो सकते हैं। हम उर्वरक आयात पर बहुत अधिक निर्भर हैं – हमारा पूरा पोटाश आयात किया जाता है, और 88 प्रतिशत यूरिया प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आयात पर निर्भर है। कृषि के लिए बायो-इनपुट और बड़े पैमाने पर बायो-इकोनॉमी के साथ, हम अपनी खाद्य और संसाधनों की जरूरतों को पूरा कर सकते हैं। भारत के लिए, ग्रीन एक विकल्प नहीं है; बल्कि अनिवार्यता है।”
इन वैल्यू चेन्स में चिन्हित किए गए कई क्षेत्र अब विशिष्ट नहीं रह गए हैं, इंजीनियर्ड बांस का पहले से ही फर्श और निर्माण सामग्री में उपयोग हो रहा है, बायो-स्टिमुलेंट्स और बायो-पॉलिमर के लिए समुद्री शैवाल एक कच्चे माल (फीडस्टॉक) के तौर पर उभर रहा है, और कृषि वानिकी को राज्य-स्तरीय भूमि-उपयोग नियोजन में एकीकृत किया जा रहा है। भारत को अब इन परिपक्व हो रहे अवसरों का व्यापक स्तर पर लाभ उठाने की जरूरत है।
सीईईडब्ल्यू (CEEW) के विश्लेषण के अनुसार:
अकेले ऊर्जा परिवर्तन 1.66 करोड़ पूर्णकालिक समतुल्य नौकरियां सृजित कर सकता है, और अक्षय ऊर्जा, भंडारण, विकेंद्रीकृत ऊर्जा व क्लीन मैन्युफैक्चरिंग में 3.79 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश आकर्षित कर सकता है। ग्रीन इकोनॉमी में इलेक्ट्रिक मोबलिटी सबसे बड़ा न्योक्ता (employer) होगा, जिसका ऊर्जा परिवर्तन से जुड़ी कुल नौकरियों में 57 प्रतिशत से अधिक हिस्सा होगा।
जैव-अर्थव्यवस्था (Bio-economy) और प्रकृति-आधारित समाधान भारत के ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों में 2.3 करोड़ नौकरियां सृजित कर सकते हैं और बाजार मूल्य में 415 अरब अमेरिकी डॉलर का दरवाजा खोल सकते हैं। इस क्षेत्र में सर्वाधिक नौकरियां देने वाले वैल्यू चेन्स में रासायन-मुक्त खेती और बायो-इनपुट (72 लाख पूर्णकालिक समतुल्य नौकरियां), कृषि वानिकी व सतत वन प्रबंधन (47 लाख पूर्णकालिक समतुल्य नौकरियां), और आर्द्रभूमि प्रबंधन (37 लाख पूर्णकालिक समतुल्य नौकरियां) शामिल हैं।
सर्कुलर इकोनॉमी सालाना 132 अरब अमेरिकी डॉलर का आर्थिक मूल्य सृजित कर सकती है और कचरा संग्रहण (वेस्ट कलेक्शन), पुनर्चक्रण (रीसाइक्लिंग), मरम्मत (रिपेयरिंग), नवीनीकरण (रिफर्बिसिंग) और सामग्री पुनर्प्राप्ति (मटीरियल रिकवरी) में 84 लाख पूर्णकालिक समतुल्य नौकरियां सृजित कर सकती है। इनमें से 76 लाख पूर्णकालिक समतुल्य नौकरियां कचरे से जुड़ी गतिविधियों से उत्पन्न होंगी, जिनमें संग्रहण, छंटाई, एकत्रीकरण, रीसाइक्लिंग संचालन और अंतिम-सिरे तक संसाधन की पुनर्प्राप्ति जैसी भूमिकाएं शामिल हैं। ये ऐसे क्षेत्र हैं, जहां पर औपचारिक व्यवस्था आने पर वेतन और काम करने की स्थितियों में सुधार देखा जा सकता है।
सीईईडब्ल्यू (CEEW) अध्ययन बताता है कि प्रारंभिक अवस्था वाले क्षेत्रों के लिए पूंजी की लागत घटाने, कच्ची व रीसाइकिल्ड सामग्री पाने के लिए सप्लाई चेन्स को सुधारने, शोध एवं विकास व नवाचार को मजबूत बनाने, तकनीकी रूप से कुशल कार्यबल तैयार करने और उभरती हरित प्रौद्योगिकियों के लिए विश्वसनीय उत्पाद मानक स्थापित करने जैसी महत्वपूर्ण चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं। ग्रीन वैल्यू चेन्स का मुख्यधारा की आर्थिक नियोजन में एकीकरण के लिए, मंत्रालयों, राज्य सरकारों, उद्योग, वित्त और स्थानीय संस्थानों के बीच तालमेल आधारित प्रयास अत्यंत जरूरी होगा।
सीईईडब्ल्यू (CEEW) का विश्लेषण रेखांकित करता है कि भारत के ग्रीन इकोनॉमिक ट्रांजिशन के लिए महिलाओं की भागीदारी बहुत जरूरी होगी। इस अध्ययन में जेंडर-रिस्पॉन्सिव स्किलिंग, सुदूर कार्यस्थलों के लिए सुरक्षित आवागमन, बेहतर वेतन और महिलाओं के नेतृत्व वाली ग्रीन इंटरप्राइजेज के लिए समर्पित वित्तीय उपायों का सुझाव दिया गया है।
राज्य सरकारें पहले से ही ग्रीन इकोनॉमी के निर्माण की दिशा में कदम उठाने की शुरुआत कर चुकी हैं। उदाहरण के लिए, ओडिशा ने ग्रीन इकोनॉमी काउंसिल और 16 विभागीय सचिवों को शामिल करते हुए एक समिति का गठन किया है, ताकि आर्थिक नियोजन में ग्रीन वैल्यू चेन्स को शामिल करने और हरित-नेतृत्व वाले विविधीकरण को बढ़ावा दिया जा सके। यह दर्शाता है कि राज्य स्तर पर मिशन-उन्मुख प्रशासन कैसे भारत के ग्रीन इकोनॉमी ट्रांजिशन को गति दे सकते हैं।


