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जिनवानी मोक्ष नसैनी है- आचार्य श्री 108 सुबल सागर जी महाराज…

चण्डीगढ़ दिगम्बर जैन मंदिर में प्रातः कालीन बेला में श्री 1008 महावीर भगवान का अभिषेक हुआ और आचार्य श्री सुबलसागर जी महाराज जी के मुखारबिंद से शांतिधारा के बीजाक्षरों का उच्चारण हुआ। तत्पश्चात् श्री मान भारत भूषण जी और श्री मति आभा जी के परिवार के द्वारा माँ जिनवाणी विधान सम्पन्न हुआ। गुरूदेव ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि जिनवाणी मोक्ष नसैनी है। अगर मोक्ष जाने के लिए आप लोगों के लिए नसैनी मिल जाएं तो क्या आप लोग जायेंगे। लेकिन आप लोग चार-पाँच सीढ़ी चढ़ने में ही थक जाते है तो इतनी बढ़ी ‘नसैनी में जो बहुत सारी सीढियाँ है उनको कैसे पार कर पायेंगे। इसलिए गुरुदेव कह रहे है आज वर्तमान में हम जिनवाणी रूपी लिफ्ट कहें तो भी कम है। इस बारह अंगो से सहित जिनवाणी को हदयगम कर ‘ले तो हम सीधे ही मोक्ष सुख धाम में पहुंच जाऐं।

जिनवाणी रूपी लिफ्ट में हम बैठ जाएँ और अगर उसको चलाना ही नहीं आयें , इसका ज्ञान ही नहीं कि ऐ चालू कैसे होगी तो क्या करें गुरुदेव पर श्रद्धान करें अर्थात् गुरु महाराज जो कह रहे है वह सही है इतना भरोसा हो जाए मात्र बस! वह जो छोटे-2 से संयम को ग्रहण करा रहें उससे ही चारित्र होगा और श्रद्धा, चारित्र के साथ सच्चे ज्ञान ही हमें शीघ्रता से मोक्ष सुख में स्थापित करने वाला है।

सच्चा ज्ञान करेंट है क्यों बिना करेंट के लिफ्ट चालू होने वाली है। सच्चा श्रद्धान, सच्चा ज्ञान, सच्चा चारित्र ही रत्नत्रय है। इसकी पूर्णता ही मोक्ष सुख धाम हैं। समोसरण में जिनेन्द्र भगवान ने नो समस्त जीवों का जीवन सुखमय, शांतिपूर्ण है इस भावना से भर कर जो वचन कहें हैं वह वचन ही जिनवाणी कहलाती हैं। जिनवाणी अथाह है अर्थात् इसका ओर- छोर नहीं हैं। यह मनुष्यों को ही नहीं तिर्यंचगति के जीवों के लिए, नरकी जीवों के लिए और स्वर्ग में उत्पन्न होने वाले देवों के लिए सभी के लिए हित कारक हैं। स्वर्गों में अहमिन्द्र जाति के जो देव है वह प्रति दिन-रात नई नई चर्चाएँ करते हैं रिपीट नहीं होती है वह मी कुछसमय के लिए नहीं अथवा जिसका कोई प्रमाण नहीं हैं ऐसे 33 सागर तक जिनवाणी की चर्चाएँ करते रहते हैं।

जिनवाणी रूपी माँ हमें समता का पाठ पढ़ाती हैं प्रत्येक अवस्था में सरल, सहज रहना सिखाती हैं। जैन आगम अनेकान्त रूप हैं प्रत्येक वस्तु का कथन यह अनेकान्त सिद्धान्त के आधार पर ही करता है। विपरीत, एकान्त, वैनियक, आदि मतों से रहित अनेकांत वा सप्तभंगी रूप है। स्थात् अस्ति आदि रूप से जिनवाणी की कथन पद्धति प्रत्येक जीवों का मंगल करने वाली है! भावों को निर्मल व पवित्र करती है। इन्द्रियों का निरोध और कषायों का शमन करने के लिए एक मात्र ही जिनवाणी ही सहायक है। इसकी भक्ति, आराधना ही भगवान व गुरुओ की आराधना करना है। यह जानकारी बाल ब्र. गुंजा दीदी एवं श्री धर्म बहादुर जैन जी ने दी।

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