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आचार्य श्री 108 सुबलसागर जी महाराज – शब्द ही व्यक्ति का व्यक्तित्व है…

चडीगढ़ दिगम्बर जैन मंदिर में प्रातः कालीन धर्म सभा को संबोधित करते हुए आचार्य श्री 108 सुबलसागर जी महाराज कहा हे भव्य आत्माओं ! बोलना एक कला है। कब, कैसे, कहाँ, कितना, क्यों, किसलिए बोलना है| इस बात पर ध्यान रखने वाला व्यक्ति ही अपने जीवन को सफलता की और ले जाने में सक्षम है। बोलते तो सभी लोग है पशु-पक्षी भी बोलते हैं लेकिन बोलने बोलने में अन्तर हो जाता है। गुरुदेव कह रहे है कि हमारी वीणा वाणी बने, न कि हमारी वाणी बाण बने। सोच समझकर बोलना भी एक कला है कहाँ कितना बोलना है या चुप रहना है।

विद्वान लोग कम बोलते हैं और जब भी बोलते हैं तो बोलने के पहले हजार बार विचार-विमर्श करते है अर्थात् सोचते हैं, तब कहीं वह बोलते हैं। तब जाकर उनके बोल को सभी सुनना पसंद करते हैं और उनकी बात में कुछ सार मिलता है उसे ही ग्रहण किया जाता है। अन्यथा वह मौन रहते हैं। किसी ने कहा है कि बोलना एक कला है, तो मौन रहना एक साधना! है। साधना तो किसको अपने बोलको, वचनों को। जिसने मौन की साधना से अपने वचनों को साध लिया वह ही बोलने की कला को सीख सकता है।

दुनियाँ में सभी व्यक्ति अपने बारे में बताना चाहता है। वह पाँच मिनट भी मौन नहीं रहता है क्यों सभी लोग ज्ञानी है सबके पास ज्ञान है उनका यह ज्ञान ही अज्ञानता है। बोलने के पहले सही शब्दों का चयन करना आना चाहिए। शब्द बुद्धि पूर्वक ही बोले जाते हैं। बिना मन के प्रयोग के शब्द नहीं बोले जाते हैं। इसलिए मन को साधना ही वचनों/ शब्दों को साधना है।

शब्द ही व्यक्ति का व्यक्तित्व होता हैं। एक जगह कहीं पढ़ने में आया था कि दुकान का गेट खुलने पर ही पता चलता हैं कि दुकान किस चीज की है इसी प्रकार व्यक्ति के बोलने से ही व्यक्ति के व्यक्तित्व की पहचान होती हैं कि व्यक्ति किस क्वाल्टी का है। आध्यात्मि जगत में साधु महाराज कुछ भी नहीं बोलने की साधना अभ्यास करते है ऐसा करने से उनको वचन की सिद्धि हो जाती है। किसी परिस्थिति वशात् अगर उनको बोलना पड़ता है तो वह बोलते है जो उस कार्य की सिद्धि स्वतः हो जाती है। और बहुत सारे संकल्प-विकल्पों से मुक्ति मिल जाती है, संक्लेष्टा – दुःख के कारण दूर हो जाते हैं। और आत्मविश्वास के बल पर मनुष्य सम्पूर्ण जगत को जीत सकता है जीवन की समस्त उपलब्धियाँ उसे प्राप्त हो जाती है। वे ही महान साधक माने जाते है जो बोलने की आवश्यकता होने पर भी नहीं खोलते है। मौन रहना बहुत कठिन होता है। मोक्षमार्ग में बोलना अच्छा नहीं कहा है।

यह जानकारी बाल ब्र. गुंजा दीदी एवं श्री धर्म बहादुर जैन जी ने दी।

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