जैन साधु का महातप कैशलोंच – आचार्य श्री 108 सुबल सागर जी महाराज…
दिगम्बर जैन मंदिर सेक्टर 27 बी चंडीगढ़ में विराजमान आचार्य श्री सुबल सागर जी महाराज ने आज उपदेश, शब्दों से नहीं देकर, साक्षात् क्रिया करते हुए, अपने हाथों से अपने सिर व मूछों के बालों को उखाड़ते हुए अपने केशों का लोचन किया।
दिगम्बर जैन आम्नाय में साधु महाराज अपने सिर दाढ़ी व मूछों के बालों को उसतरा या कैंची आदि औजारों से नहीं बनाते। वे स्वयं ही 3 या 3½ माह के अन्दर ही अपने हाथों से ही अपने सर दाढ़ी मुछों के बालों को उखाड़-कर फेंकते हैं। जिसको कैशलोंचन विधि कहते हैं। साधु महाराज जी के 28 मूलगुणों में से एक मूलगुण कैशलोंचन होता हैं।
दिगम्बर जैन साधु स्वालंबी होते हैं, वे अपनी चर्या के प्रति कठोर होते है और लोक व्यवहार में बढ़े ही मृदु अर्थात् सरल, सहज होते हैं। जब वह अपना कैशलोंचन करते हैं, तो उस दिन उनका उपवास होता हैं अर्थात् 48 घंटे के बाद ही वे आहार पानी के लिए दिन में एक बार उठते हैं।
यहाँ साधारण व्यक्ति को देखो वह अपने बालों के सजाने-सबारने के लिए क्या-2 कर्म नहीं करता, उससे उस व्यक्ति के चहरे की शोभा होती हैं, दिन भर में कई बार दर्पण के सामने जाकर अपने आपको निहारता रहता हैं, कि कैसा लग रहा हैं चहरा, वह चहरे से ही अपनी पहचान समझता हैं।
आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो चहरे से व्यक्ति की पहचान नहीं होती हैं, पहचान तो व्यक्ति की वाणी, व्यवहार, और उसके श्रेष्ठ विचारों से होती हैं।
व्यक्ति चाहे चहरे से सुन्दर न हो, लेकिन उसका व्यवहार, विचार, वाणी अच्छी हैं तो व्यक्ति का व्यक्तित्व श्रेष्ठ होता हैं, वही सफल व्यक्ति होता है।
जैसे माली बागवान से फूलों को चुन लेता है उसी प्रकार दिगम्बर साधु अपने सिर, दाढ़ी, मूछों के बालों को चुन-चुनकर निकाल फेंकते हैं। दिगम्बर साधु नग्न रहते हैं, उनके मन में विकार-वासना नहीं होती हैं, जैसे बच्चे का जन्म होता हैं वह नग्न ही होता है, यह सहज वृत्ति होती है इसी सहज वृत्ति के समान अपना जीवन-यापन, यह दिगम्बर जैन साधु किया करते हैं, जिनके मन में विकार-वासना होती हैं वह व्यक्ति दिगम्बर भेष को धारण नहीं कर सकता हैं।
समस्त संसार में मन को जीतने वाले अगर कोई हैं, तो वह दिगम्बर जैन साधु ही हैं, जिनकी कोई ड्रेस नहीं होती है, जिनका कोई एड्रेस नहीं होता है, जिनका कोई बैंक बैलेंस नहीं होता है, जिनका कोई परिवार नहीं होता है, समस्त विश्व के कल्याण की भावना के साथ अपनी साधना में तत्पर रहते हैं, ऐसें दिगम्बर जैन साधु होते हैं।
यह जानकारी संघस्थ बाल ब्र. गुंजा दीदी एवं धर्म बहादुर जैन जी ने दी ।


