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श्री खेड़ा शिव मंदिर सेक्टर 28 चण्डीगढ़ में शिव महापुराण की कथा के दौरान कथा व्यास आचार्य ईश्वर चन्द्र शास्त्री जी के प्रवचनो ने किया मंत्रमुग्ध…

समाज में परोपकार से बढकर कोई धर्म नहीं होता, यह ऐसा धर्म है जिससे करने से शत्रु भी सच्चा मित्र बन जाता है। परोपकार के द्वारा ईश्वर की समीपता प्राप्त होती है। मानव जीवन में इसका बहुत महत्व होता है। ईश्वर ने प्रकृति की रचना इस तरह से की है कि आज तक परोपकार उसके मूल में ही काम कर रहा है। जिस तरह से वृक्ष कभी भी अपने फल नहीं खाते, नदियां अपना पानी नहीं पीती, सूर्य हमें रोशनी देकर चला जाता है, उसी प्रकार से प्रकृति अपना सर्वस्व हमको दे देती है। वह हमें इतना कुछ देती है लेकिन बदले में हमसे कुछ भी नहीं लेती।

श्री खेड़ा शिव मंदिर सेक्टर 28 चण्डीगढ़ में शिव महापुराण की कथा के दौरान कथा व्यास आचार्य ईश्वर चन्द्र शास्त्री जी ने कहा कि किसी भी व्यक्ति की पहचान परोपकार से ही होती है। जो व्यक्ति परोपकार के लिए अपना सब कुछ त्याग देता है वह उच्च कोटि व्यक्ति होता है। जिस समाज में दूसरों की सहायता करने की भावना जितनी अधिक होगी, वह समाज उतना ही सुखी और समृद्ध होगा। यह भावना मनुष्य का एक स्वाभाविक गुण होता है।

परोपकार दो शब्दों से मिलकर बना है, पर + उपकार। इसका का अर्थ होता है दूसरों का अच्छा करना और दूसरों की सहयता करना। किसी की मदद करना ही परोपकार कहा जाता है।

परोपकार की भावना ही मनुष्यों को पशुओं से अलग करती है, नहीं तो भोजन करना और नींद लेना तो पशुओं में भी मनुष्य की तरह पाया जाता है। अच्छा कर्म करने वालों का न यहां और ना ही परलोक में विनाश होता है।

दूसरों की मदद करने वाला सच्चा वही व्यक्ति है, जो प्रतिफल की भावना न रखते हुए मदद करता है। मनुष्य होने के नाते हमारा यह नैतिक कर्तव्य बन जाता है कि हम सब मानवता का परिचय दें। मनुष्य ही मानवता की रक्षा कर सकता है। इस कार्य के लिए कोई दूसरा नहीं आ सकता।

गोस्वामी तुलसीदास जी ने इस संदर्भ में बड़ी ही सुन्दर पंक्तियाँ लिखी हैं

परहित सरिस धर्म नहिं भाई।।  पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।।

उन्होंने ‘परहित’ अर्थात् परोपकार को मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म बताया है । वहीं दूसरी ओर दूसरों को कष्ट पहुँचाने से बड़ा कोई अधर्म नहीं है । परोपकार ही वह गुण है जो मानव के सच्चे ज्ञान का मार्ग को प्रशस्त करता है। ऋषि दधीचि ने देवताओं के कहने पर लोककल्याण के लिए अपना शरीर दान कर दिया। इसी महान गुण के कारण ही आज भी लोग उन्हें श्रद्‌धापूर्वक नमन करते हैं। इसलिए परोपकार का गुण अवश्य अपना चाहिए।

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