बरवाला के बतौर गांव में किसानों के समर्थन में महिलाओं ने इकट्ठा हो किया रोष प्रदर्शन….
दिनांक 14 2021 को सीटू की जिला प्रधान रमा, जनवादी महिला समिति से निर्मला देवी, आशा वर्कर से प्रधान सुमन देवी, महासचिव वंदना देवी व सीटू से आरएस साथी रणधीर सिंह आदी ने इकट्ठे होकर बरवाला टोल प्लाजा पर पहुंचकर किसान भाइयों का समर्थन करते हुए प्रदर्शन किया। तत्पश्चात गांव बतौर में जाकर किसानों के समर्थन में महिलाओं को इकट्ठा कर प्रदर्शन किया। प्रदर्शन मेें आंगन वाड़ी से नसीब देवी, सुशील देवी ने कहा हम किसान भाइयों के साथ हैं। क्योंकि यह लड़ाई सिर्फ किसान कि नहीं बल्कि हर भारतवासी की है। इस प्रदर्शन की अध्यक्षता सीटू की जिला प्रधान रमा, जनवादी महिला समिति से निर्मला देवी के नेतृत्व में की गई व आशा वर्कर की जिला सचिव वंदना देवी व प्रधान सुमन देवी ने इस प्रदर्शन को संबोधित किया।
महिला किसान – देश की शान
18 जनवरी महिला किसान दिवस ज़िंदाबाद!
किसान विरोधी, जन विरोधी काले कानून वापस लो!
रमा ने कहा पिछले डेढ़ महीने से लाखों किसान कड़कड़ाती ठंड में दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए हैं। उनका एक ही संकल्प है कि या तो कृषि विरोधी काले कानून रद्द होंगे या फिर शहीदी देकर जाएंगे। अब तक 60 से ज्यादा किसान शहादत दे चुके हैं।किसानों का आंदोलन जनता का आंदोलन बन चुका है। परन्तु केंद्र की भाजपा सरकार इस सब की अनदेखी करते हुए तानाशाहीपूर्ण ढंग से इन कानूनों को जोर जबरदस्ती से लागू करने पर उतारू है।
अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति जोकि देश में महिलाओं का सबसे बड़ा संगठन है, इस आंदोलन का पूरा समर्थन करती है क्योंकि आज हमारे देश का किसान जो लड़ाई लड़ रहा है वह कृषि व्यवस्था को बचाने, न्यूनतम समर्थन मूल्य हासिल करने के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा, राशन वितरण प्रणाली, पशु पालन तथा रोजगार तथा देश को बचाने की लड़ाई है। इस लड़ाई में किसान-मजदूर महिलाएं भी अगली कतारों में शामिल हैं।
आशा से जिला सचिव वंदना ने कहा महिलाएं हमारे देश की कृषि व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी हैं। दुनिया का पहला किसान महिला को माना जाता है। महिलाओं के बिना खेती-बाड़ी की कल्पना मुश्किल है। घर में चूल्हा चौका से लेकर गाय, भैंस को चारा, गोबर, दूध निकालने से लेकर फसल की कटाई, निराई, गुड़ाई, छुलाई, चुगाई में महिलाओं की जो भूमिका रहती है। उसको नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। खेती कार्यों का 75% हिस्सा महिलाएं सम्हालती हैं लेकिन वे केवल 12% कृषि भूमि की मालिक हैं। उन्हें किसान होने की मान्यता भी नहीं मिलती है। किसानों को मिलने वाली 6000/- सालाना की राशि से वे वंचित रह जाती हैं। किसानों को मिलने वाली अन्य सहूलियतों को भी वे हासिल नहीं कर पाती। खेती संबंधी योजनाओं व नीतियों में महिलाएं शामिल नहीं हैं। आप सोचिए, अगर महिला किसान आत्महत्या कर लेती है तो उसके परिवार को किसी प्रकार का मुआवजा नहीं मिलता। पुरूषों द्वारा किए जाने वाले ज्यादातर कामों से संबंधित तकनीक व मशीनें जल्दी बाजार में आ जाती है जबकि महिलाओं को ज्यादातर काम हाथों से करने पड़ते हैं।
इसी संदर्भ में संयुक्त किसान मोर्चा ने 18 जनवरी को महिला किसान दिवस मनाने का निर्णय लिया है। इस दिन महिलाएं पूरे देश में आंदोलन की अगुवाई करेंगी और कृषि विरोधी काले कानूनों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करेंगी। इन कारपोरेट परस्त कानूनों से मंडी व्यवस्था, राशन वितरण प्रणाली, खाद्यान्नों के मामले में देश की आत्मनिर्भरता खत्म हो जाएगी। जमाखोरी और कालाबाजारी बढ़ेगी। इसका असर हमें अभी से देखने को मिल रहा है। जैसे-जैसे ये कानून अपना शिकंजा कसेगें, देश में भुखमरी और कुपोषण के हालात और ज्यादा भयानक होंगे।
अतः सभी आम जनों से अपील है कि देश को भुखमरी, कुपोषण, महंगाई, गरीबी और बेरोजगारी से बचाने की इस लड़ाई में बड़ी संख्या में हिस्सेदारी करें। किसान आंदोलन के समर्थन में तन मन धन से सहयोग करें तथा ज्यादा से ज्यादा संख्या में आंदोलन में भागीदारी बने।
जारीकर्ता
रमा जिला प्रधान
सीटू पंचकूला
78370-47490


