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काली माता मंदिर कालका की स्थापना कैसे हुई। और कोरोना जैसी महामारी के चलते मंदिर का दृश्य

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पौराणिक कथाओं के अनुसार, काली माता मंदिर के नाम पर ही शहर का नाम कालका पड़ा था। मान्यता है कि यहां मांगी गई हर मुराद पूरी होती है।
किंवदंति के अनुसार, सतयुग में महिषासुर, चंड-मुंड, शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज आदि राक्षसों का उपद्रव बढ़ गया था, जिससे देवता भी डरकर कंदराओं में छिपे फिरते थे। एक दिन सभी देवताओं ने आदिशक्ति श्री जगदंबा मातेश्वरी की स्तुति की, जिससे प्रसन्न होकर माता एक बालक के  रूप में प्रकट हुईं।

देवताओं का दुख सुनकर माता ने अपने स्वरूप को विस्तृत किया, जिसके हजारों हाथ पैर थे। सभी देवताओं ने आदिशक्ति को अपना एक-एक शस्त्र दिया। विष्णु ने चक्र, शिव ने त्रिशूल, ब्रह्मा ने कमंडल, इंद्र ने वज्र, शेषनाग ने शेषफांस, यमराज ने यमफांस आदि शस्त्र माता को अर्पण किए।

इसके बाद माता जगदंबा रणभूमि में उतरीं और महिषासुर सहित अन्य दैत्यों का संहार करके कालका भूमि स्थल पर स्थित हुईं, जो कालांतर में कालका में काली माता के नाम से प्रसिद्ध हुई।

धारणा ऐसी भी है कि भगवान कृष्ण के द्वापर युग में जब पांडव जुए में हार गए थे तो उन्हें 12 वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास हुआ। उस दौरान वह विराटनगर में 12 वर्ष रहे। उस समय केवट राजा के राज्य में गाय की बहुत सेवा की जाती थी। वहीं एक श्यामा नामक गाय रोजाना अपने दूध से माता की पिंडी का अभिषेक करती थी। यह करिश्मा देख पांडव आश्चर्यचकित रह गए व पांडवों ने इसी स्थान पर मंदिर की स्थापना की।

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