डॉ. अरुणाभा घोष, सीईओ, सीईईडब्ल्यू और दक्षिण एशिया के लिए कॉप30 स्पेशल एनवॉय, ने कहा, “जलवायु वार्ताएं _जलवायु वास्तविकता और पहले से चल रही कार्रवाई से अलग रह जाने के खतरे में थीं। लेकिन ब्राजील में आयोजित काॅप30 में आखिरकार वास्तविक दुनिया वापस चर्चा में लौट आई….
एक ऐसे वर्ष में, जहां जलवायु बहुपक्षवाद को चुनौती दी गई है, वहां पर एक सर्वोत्तम समझौते की तलाश में कोई भी समझौता न करने की जगह पर एक अच्छा समझौता करना कहीं बेहतर रहा।
आसान सी सच्चाई यह है कि दुनिया द्विआधारी (या दोरंगी) (बाइनरी) नहीं है। वास्तविक परिवर्तन विकास के जटिल और कठिन विकल्पों के बीच आते हैं।
हमने कम से कम अनुकूलन वित्त को तीन गुना करने की अपील (भले ही 2035 तक); एक न्यायसंगत परिवर्तन के लिए विभिन्न राष्ट्रीय मार्गों (पाथवेज) को मान्यता; जलवायु वित्त पर दो साल के विस्तृत कार्यक्रम को स्थापित करने का निर्णय, जिसमें समग्र रूप से अनुच्छेद 9 के संदर्भ में अनुच्छेद 9.1 भी शामिल है; यह पुष्टि करना कि जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए उठाए गए उपाय, जिनमें एकतरफा प्रयास भी शामिल हैं, मनमानी या अनुचित भेदभाव के साधन नहीं होने चाहिए; और अंत में, अगले साल एक उच्च-स्तरीय संवाद सहित एक ग्लोबल इंप्लीमेंटशन एक्सिलेटर (Global Implementation Accelerator) शुरू करने के निर्णय जैसे कई महत्वपूर्ण कदम देखे हैं।
हमें वास्तविक निवेश मार्गों, नुकसान व क्षति के स्तर की ईमानदारी से पहचान, पर्याप्त रियायती वित्त और एक ऐसी प्रणाली की आवश्यकता है, जो विभिन्न कॉप का वैसे ही मूल्यांकन करे जैसे कंपनी बोर्ड वार्षिक प्रदर्शन का मूल्यांकन करते हैं – योजनाओं पर नहीं, बल्कि अंतिम परिणामों पर।
विकासशील दुनिया लंबे समय से अमूर्तता में अटकी बहस में वास्तविक दुनिया की स्पष्टता – और वास्तविक समाधानों – को जोड़ रही है। परिणाम देना (डिलीवरी) ही विश्वास की एकमात्र मुद्रा (करेंसी) है। वार्ताओं ने परिणाम दिए हैं। अब पहल (एक्शन) होनी चाहिए।”


