भारत का उपचारित प्रयुक्त जल (treated used water) 2047 तक 35 बिलियन डॉलर तक का आर्थिक अवसर, 1 लाख से अधिक नए रोजगार दे सकता है: सीईईडब्ल्यू…
नई दिल्ली, 14 नवंबर 2025: भारत की उपचारित प्रयुक्त जल अर्थव्यवस्था (treated used water economy) 2047 तक 3.04 लाख करोड़ रुपये (35 बिलियन अमरीकी डॉलर) तक की आर्थिक संभावनाएं खोल सकती है, जिसमें 72,597 करोड़ रुपये (8.35 बिलियन अमरीकी डॉलर) का सालाना संभावित बाजार राजस्व और 1.56-2.31 लाख करोड़ रुपये (18-27 बिलियन अमरीकी डॉलर) का बुनियादी ढांचा निवेश शामिल है। यह जानकारी काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) के एक नए स्वतंत्र अध्ययन ‘फाइनेंसिंग फॉर ट्रीटेड यूज्ड वॉटर रियूज इन इंडिया’ से सामने आई है।
इस अध्ययन का अनुमान है कि भारत 2047 में 31,265 मिलियन क्यूबिक मीटर उपचारित प्रयुक्त जल का दोबारा इस्तेमाल कर सकता है। अगर इसे सही वित्तपोषण, विनियमन और बुनियादी ढांचे की मदद मिले, तो यह उद्योगों और सिंचाई के लिए पानी की मांग के एक बड़े हिस्से को पूरा करने के लिए पर्याप्त होगा। भारत अभी कुल प्रयुक्त जल के लगभग 28 प्रतिशत (20.24 बिलियन लीटर प्रतिदिन) हिस्से का ट्रीटमेंट करता है, और 80 प्रतिशत से अधिक शहर या तो इस उपचारित प्रयुक्त जल का दोबारा इस्तेमाल नहीं करते, या फिर उनके पास इसे दोबारा इस्तेमाल करने के लिए बुनियादी ढांचे की कमी है। इसलिए, शहरी तंत्र में उपचारित प्रयुक्त जल के लिए विशाल संभावानाएं मौजूद हैं। उपचारित प्रयुक्त जल का दोबारा इस्तेमाल बढ़ाने से 2047 तक देश भर में 1 लाख से अधिक नए रोजगार सृजित हो सकते हैं।
सीईईडब्ल्यू के निष्कर्ष ऐसे समय में आए हैं, जब भारत ने अपने नेशनल फ्रेमवर्क ऑन सेफ यूज ऑफ ट्रीटेड वॉटर को आगे बढ़ाया है, जो नीति-निर्माताओं को सभी शहरों में उपचारित प्रयुक्त जल के दोबारा इस्तेमाल के लिए वित्तपोषण और विस्तार के लिए एक डेटा-आधारित रोडमैप उपलब्ध कराता है। शहरी भारत से प्रतिदिन 72 बिलियन लीटर से अधिक प्रयुक्त जल निकलता है, लेकिन इसका अधिकांश हिस्सा ट्रीटमेंट या दोबारा इस्तेमाल से छूट जाता है। पानी की मांग में तेज वृद्धि के साथ, उपचारित प्रयुक्त जल का दोबारा इस्तेमाल मांग-आपूर्ति का अंतर पाटने के लिए एक व्यावहारिक, विस्तार देने योग्य समाधान पेश करता है। नए तरल अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2024 के तहत, उद्योगों और दूसरी संस्थाओं जैसे बड़े उपयोगकर्ताओं के लिए अब अपने अपशिष्ट जल के कम से कम 20 प्रतिशत हिस्से का ट्रीटमेंट और दोबारा इस्तेमाल करना जरूरी है, जो 2031 तक बढ़कर 50 प्रतिशत हो जाएगा। यह बढ़ते बाजार में एक नियामकीय जिम्मेदारी को जोड़ता है, जो ताजे पानी की निकासी रोकने, स्थानीय स्तर पर लचीलापन बढ़ाने के साथ हरित रोजगार (Green Jobs) पैदा कर सकता है।
शालू अग्रवाल, डायरेक्टर ऑफ प्रोग्राम्स, सीईईडब्ल्यू, ने कहा, “भारत को प्रुयक्त जल को दायित्व नहीं, बल्कि एक संपत्ति की तरह देखना चाहिए। दोबारा इस्तेमाल होने वाला प्रत्येक लीटर पानी हमारे शहरों के लचीलेपन, हमारे उद्योगों की प्रतिस्पर्धात्मकता और हमारी ऊर्जा सुरक्षा में एक निवेश है। उपचारित प्रयुक्त जल (Treated used water ) एक चक्र का पूरा होना नहीं है, बल्कि शहरी भारत के लिए सर्कुलर इकोनॉमी की शुरुआत है। यह विकास, रोजगार और लचीलेपन के लिए भारत का अगला बड़ा संसाधन है। लोक-निजी भागीदारी, म्युनिसिपल ग्रीन बॉन्ड और औद्योगिक सह-निवेशों के माध्यम से, आज हम सर्कुलर उपायों का वित्तपोषण करके अपशिष्ट माने जाने वाले प्रयुक्त जल को एक सतत भविष्य के लिए संपदा में बदल सकते हैं।”
सीईईडब्ल्यू (CEEW) का अध्ययन यह भी बताता है कि कैसे सर्कुलर निवेश पहले से ही भारतीय शहरों में नतीजे दे रहे हैं। सूरत अभी उद्योगों को तृतीयक-उपचारित प्रयुक्त जल (tertiary-treated used water) को 36 रुपये प्रति किलोलीटर कीमत पर आपूर्ति करता है, जिसकी कीमत ताजे पानी से थोड़ा कम है, जिससे शहर को 2014 से लेकर 2021 के बीच 230 करोड़ रुपये से अधिक का राजस्व जुटाने में मदद मिली है। अध्ययन में वॉटर रियूज सर्टिफिकेट्स को एक बाजार-आधारित तंत्र के रूप में लाने का सुझाव दिया गया है। यह अपने रियूज लक्ष्यों को पार करने वाले थोक उपयोगकर्ताओं को अपने लक्ष्य से पिछड़ने वालों के साथ क्रेडिट व्यापार करने, अपनी दक्षता को मौद्रिक लाभ में बदलने की छूट देगा, और अनुपालन के लिए प्रोत्साहनों को तैयार करेगा।
नितिन बस्सी, फेलो, सीईईडब्ल्यू, ने कहा, “उपचारित प्रयुक्त जल के दोबारा उपयोग को बढ़ाना, भारत के शहरों की जल-सुरक्षा के सबसे व्यावहारिक उपायों में से एक है। शहरी स्थानीय निकायों को दीर्घकालिक शहरी योजनाओं के निर्माण, वित्तपोषण में विविधता लाकर और उचित, लागत-निकालने भर के शुल्क निर्धारित करके उपचारित प्रयुक्त पानी को दोबारा इस्तेमाल करने की दिशा में भारत में परिवर्तन का नेतृत्व करना चाहिए। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के संचालन में अनुमानित एक लाख प्रत्यक्ष नौकरियों के अलावा, उपचारित प्रयुक्त जल के दोबारा इस्तेमाल का विस्तार निर्माण और प्रौद्योगिकी सेवाओं में भी रोजगार पैदा करेगा, नगरपालिकाओं के लिए एक स्थायी राजस्व सृजित करेगा, हरित निवेश आकर्षित करेगा और नदियों में प्रदूषण भी घटाएगा। सही नियोजन, मूल्य निर्धारण और व्यापार मॉडल के साथ, प्रयुक्त जल एक वित्तीय रूप से सतत और पर्यावरणीय रूप से सशक्त करने वाला शहरी संसाधन बन सकता है।”
सीईईडब्ल्यू (CEEW) के अनुमान केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन और आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के राष्ट्रीय और राज्य-स्तरीय आंकड़ों पर आधारित हैं। अध्ययन ने 2047 तक की ऐतिहासिक विकास दरों का उपयोग करके भविष्य की ट्रीटमेंट क्षमता का अनुमान लगाया है। मौजूदा औद्योगिक और सिंचाई दरों के आधार पर दोबारा इस्तेमाल करने के मूल्य की गणना की गई है। इसके अलावा, एक यथार्थवादी निवेश और रोजगार रोडमैप देने के लिए, सभी सामान्य उपचार प्रौद्योगिकियों में जीवनचक्र लागत, नौकरी गुणांक और ऊर्जा फूटप्रिंट का विश्लेषण किया गया है।
साइबा गुप्ता, आयुषी कश्यप, क्लार्क कोवाक्स, कार्तिकेय चतुर्वेदी और नितिन बस्सी की ‘Financing for Treated Used Water Reuse in India’ रिपोर्ट यहां पर पढ़ा जा सकता है –
https://www.ceew.in/publications/water-reuse-and-sustainable-financing-for-india-water-crisis


